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प्यारी बेटी-बेटी चमत्कार से कम नहीं होती हैं

DINESH KUMAR KEER 08 Feb 2024 कहानियाँ समाजिक 5454 0 Hindi :: हिंदी

प्यारी बेटी (बेटी है तो कल है) 


किसी गाँव में एक परिवार रहता था। उस परिवार में गणेश अपनी पत्नी रेखा, छोटा बेटा दिनेश, बहू विमला, पौत्री अनन्या के साथ रहता था। गणेश का बड़ा बेटा विकास बड़े शहर में एक अंतर्राष्ट्रीय कम्पनी में प्रभारी के रुप में कार्यरत था।

नातिन अनन्या के जन्मदिन पर गणेश को बड़ी खुशी हुई थी। गणेश चाहता भी था कि उसके घर में लक्ष्मी आये। घर के अन्य सदस्य बेटा चाहते थे। बहू विमला घर का कोई काम नहीं करती थी। वह हर समय पति के साथ रहने की जिद करती थी। वह कभी भी ससुराल में कोई काम नहीं करती थी। दिनभर मोबाइल पर व्यस्त रहती थी। दिन - भर गाने सुनना और फोन पर बातें करना यही उसकी दिनचर्या थी। वह सभी से लड़ती थी।

वैसे तो घर में उसका स्वभाव देखकर कोई नहीं चाहता था कि इसे कोई सन्तान हो। सभी उससे छुटकारा पाना चाहते थे। छोटा बेटा दिनेश शास्त्री कर रहा था और घर पर बच्चों को पढाया करता था। इससे वह तेरह - चौदह हजार रुपए मासिक कमा लिया करता था। इसके साथ ही वह खेती का काम भी देखता था। दिनेश के माता-पिता चाहते थे कि वह बाहर रहे और आगे अपना भविष्य बनाये। किन्तु दिनेश माँ - बाप को गृह - कलह में फँसा छोड़कर नहीं जाना चाहता था।

ऐसे हालातों में एक बेटी का जन्म होने से सभी को चिन्ता होने लगी कि बहू कैसे उसे अच्छे संस्कार देकर पोषित करेगी और पढ़ायेगी? सबकी चिन्ता स्वाभाविक थी। विकास अपने पति से भी शादी के बाद से ही झगड़ने लगी थी। इसीलिए कोई भी उसे पति के साथ भेजने को तैयार नहीं होता था। गणेश का बड़ा बेटा भी उससे बहुत परेशान था। वह भी उसे साथ नहीं ले जाना चाहता था।

धीरे - धीरे महीना गुजरा। बेटी के आने से चमत्कार हुआ। सभी उसे हाथों पर लिए रहते। अनन्या ने सबका मन मोह लिया था।

धीरे - धीरे वह बड़ी हुई। तीन वर्ष की होने को थी। अनन्या के आने से सभी को पता नहीं चला कि तीन वर्ष कैसे गुजर गये। विमला का व्यवहार ज्यों का त्यों था। किन्तु अनन्या के साथ रहते हुए सब उसके व्यवहार से अछूते रहते थे। अनन्या के पास होने से सब लोग लड़ाई -झगड़ा भूल जाते थे। अनन्या भी अब अपने पापा को चाहने लगी थी। वह रोज तीनों समय पापा से बात करती और सुबह - शाम वीडियो काॅल करवाती। इस प्रकार उसकी तोतली बोली, खेल से सभी को मानो नया जीवन मिल गया था।

अनन्या के पापा जब भी माह में दो - चार दिन के लिए घर आते तो अनन्या हमेशा उनके साथ रहती।

अब अनन्या भी समझने लगी थी कि ये हमारे पापा हैं। वह हर समय पापा से साथ ले जाने और बुलाने की जिद करती। उसके पापा उससे कहते कि, "तुम अपनी माँ को कहो कि अगर साथ रहना है तो पहले अपना व्यवहार सुधारे। सबसे अच्छी तरह बोले। घर के काम में दादी की मदद करे। अगर वह तीन माह अच्छी तरह से व्यवहार करेगी तो वह उसे माँ सहित शहर ले जायेगा।" अनन्या जानती थी कि उसकी माँ सबसे लड़ती है। वह माँ को डाँटती भी थी, लेकिन वह नहीं मानती थी। अब जब अनन्या ने कहा तो उसने अपना व्यवहार बदलना शुरू कर दिया। धीरे - धीरे वह घर का काम करने लगी और सभी से प्रेमपूर्वक व्यवहार करने लगी। बहू के पिता ने भी उसे समझाया। पहले यही पिता उसे उल्टी शिक्षा देते थे, जिसके कारण विमला सभी से गलत व्यवहार करती थी। उसके इस व्यवहार से सभी खुश रहने लगे। घर की खुशियाँ फिर से वापस लौट आयीं। समय आने पर विकास, विमला को भूमि के जन्म - दिन के बाद अपने साथ शहर ले गया और वे वहाँ हिल - मिलकर प्रेमपूर्वक रहने लगे।

गणेश का छोटा बेटा दिनेश भी बाहर जाकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुट गया।


संस्कार सन्देश :- बेटी सचमुच चमत्कार से कम नहीं होती हैं। अतः हमें सदैव इनका मान - सम्मान करना चाहिए।

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