Arun Tomar 23 May 2023 आलेख हास्य-व्यंग Hasya vyangy, vyangy,hasya lekh, Article , Karl Marx, 6752 0 Hindi :: हिंदी
इधर पढ़ते हुए एक काम की चीज़ मेरे हाथ लगी । और जब मैंने उस प्रेरणा को अमल में लाया तो मेरा आत्मविश्वास भी ठीक-ठाक हो गया । हुआ यूँ कि हमने अपने पसंदीदा लेखक की एक बात पर गहन माथापच्ची की , उन्होंने अपने साफ शब्दों में कहा था कि-"मुर्खता का आत्मविश्वास सर्वोपरि है !" फिर क्या था दिनों दिन हमने मुर्खता वाले कार्य करना शुरु कर दिये ।शुरु-शुरु में हमें मुर्खता के कार्यों से बड़ा संकोच और ग्लानि हुयी, उन्हीं दिनों मैंने यह सुना "सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगे लोग" यह सुनकर मैंने लोगों को लगभग अनसुना किया । आजकल मुर्खता में मेरा दिल ऐसा रमा कि मेरा आत्मविश्वास बढ़ता ही जा रहा है,मेरे मुर्खता के कार्यों से कितनी वारदातें हुयी यह तो मुझे मालुम नहीं है । खैर मेरे मुर्खता के कार्यों से ऐसा बिल्कुल भी नहीं होता कि मेरे द्वारा रेल की पटरियां उखाड़ दी गयी हो, बसें जला दी गयी हो,भीड़ को भड़का दिया गया हो, जाम लगा दिये गये हो और बैंक लूट लिए गये हो आदि-आदि । मेरे मुर्खता के कार्यों में बड़ी शालीन भिन्नता है । आज ही मैंने एक बड़ा मुर्खता का कार्य यह किया है मैंने पूंजीपतियों के खिलाफ अपने ही घर में हड़ताल शुरु कर दी है । सुबह से मैं घर की छत पर हूँ और एकांतवास में धूप खा रहा हूँ । मैं आज की हड़ताल में पूंजिपतियों के खिलाफ कोई शस्त्र ढूंढ निकालने की पूरी कोशिश करुंगा। ऐसा नहीं है कि मैं मार्क्स से प्रभावित हूँ और किसी हिंसा पर उतारु होऊंगा । मार्क्स से वास्तव में हमारा दूर का नाता है जिसका असर यह रहा मैंने कभी भी खुद को मार्क्स अधिक लाने पर जोर नहीं दिया बस ज्ञान के पीछे मैं भागा ।कुछ दिन भोजन से ज्यादा किताबें खायी ,जिससे मेरी मानसिक अवस्थाएं प्रभावित हुई और मैंने लगे हाथों पूंजीवाद को पकड़ लिया । उन्हीं दिनों अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर हमसे रास्ते में टकराये उन्होंने मेरी गंभीरता को समझते हुए कहा-"भाई तुम्हारे हिस्से की पूंजि कोई खा रहा है तुमने जल्दी कुछ नहीं किया तो तुम्हारी प्रगति संभव नहीं है ।" यह ज्ञानवाणी सुनकर कई दिनों तक हम सदमे में रहे । मेरे हिस्से की पूंजि कैसे काले धन में बदल गयी मैंने इसपर खूब तर्क-वितर्क किये । फिर मैं इस नतीजे पर भी जल्दी पहुंच गया कि पूंजिवाद भ्रष्टाचार, बेरोजगारी,काला बाजारी और जमाखोरी को पैदा करता है । यह सब देखने के लिए एक दिन मैं पूंजिपतियों की कम्पनियों का दौरा करने गया । एक जगह मेरी सोच को धक्का लगा ,जाते ही मुझे ह्यूमन रिसोर्स वालों ने पकड़ लिया और अपने विभाग में ले गये । फटाफट उन्होंने मुझे कम्पनी का विकास अधिकारी बना दिया । चूंकि मैं मालिकों का शत्रु हूँ इसलिए कम्पनी का उत्पादन बढ़ाना मुझे गंवारा नहीं था । मैं वहां से चला आया इस घटना ने मुझे मुर्खता के चरम पर पहुंचाया और मैंने महसूस किया मैं पूंजिपतियों के खिलाफ और भड़क गया हूँ । मैं सुबह से एकांत में हूँ लेकिन चाह रहा हूँ कोई मुझसे बार-बार पूछे कि -"भाई आज क्या चल रहा है? क्या कर रहे हो? और फिर मैं उन्हें इस हड़ताल के बारे में बताऊं! हालांकि मुझे पता है मेरी व्यथा सुनकर मुझे कोई खाने-पीने की सलाह नहीं देगा । वैसे यहाँ मेरे परामर्शदाताओं और सलाहकारों की कोई कमी नहीं है , उनके यह परामर्श और सलाह मुझे सावधान करने या गलतियों से बचाने के लिए ही होते है ,फिर भी घोर विडंबना ये है कि मुझसे बड़ी-बड़ी गलतियां हो जाती है । एक बार हमें दीन-ए-इलाही धर्म का पुनरुत्थान करने की सूझी । मोहल्ले के एक बड़े प्रबुद्धजन ने मुझे यह गलती ना करने के लिए कहा ,और मुझे जबरदस्ती साम्प्रदायिकता पर कई व्याख्यान घोटकर पिलाये ।हमने उनकी एक ना सुनी और सीधे आगरा चले गये वहाँ कितने दिनों तक हमने अकबर की कब्र के चक्कर काटे । हमारा मानना था कि अब तो हिन्दू और मुसलमानों को धार्मिक मतभेद मिटाकर एक ही दृढ़ मार्ग पर चलना चाहिए । जिस दिन यह विचार मैंने लोगों को समझाना शुरु किया उसी रात विशेष समुदाय वाले हमें पीट गये । अगले दिन प्रेरणा लेने लिए मैंने अहिंसा व्रत चालू किया और पूरे दिन गांधीजी का जाप किया । फिर शाम तक सब सही रहा लेकिन रात होते ही मुझे फिर अपने समुदाय वालों ने पकड़ा फिर अगले दिन हमने अपने इधर की गाड़ी पकड़ी । पिटाई में हमारी श्रद्धा इतनी टूट चुकी थी कि हमने अकबर की कब्र पर पुष्पांजलि भी अर्पित नहीं की । जिस कारण अकबर का भूत सपनों में डराता रहा ।