Kranti Raj 21 Jul 2023 कविताएँ समाजिक 6480 0 Hindi :: हिंदी
अपनी नजर से देखो सामने वालो की हक्कित क्या है गुजरे जमाने में जीते है वर्तमान महौल को देखा है सच्चे की साथी ,आँखो से दिखता है की झुठे नकाव लगाये घुमता है प्यार की वास्ता देकर बेवफा की चादर ओढता है फरिस्ते ने बनाया सब को एक समान फिर कैसे हो जाते है,लोग बईमान एक तरफ कुआँ एक तरफ खाई कुछ लोग तो गलत रास्ते पे चलने की कसम खाई है ! न रंग पर जाइये न रूप पर जाइये न फुलो से दोस्ती न काँटो से किजीए अनजाने परिन्दो से दुर रहिए अपने हिसाव से क्रान्तिराज चलते है ! कवि-क्रान्तिराज बिहारी दिनांक-21-07-23