संदीप कुमार सिंह 28 Aug 2023 ग़ज़ल समाजिक मेरी यह गज़ल समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 11823 0 Hindi :: हिंदी
(ग़ज़ल) बात बनते कहां हमारे हैं, सोच से ही सुमन नजारे हैं। रात जमते कहां हमारे हैं, चाहतें अब जवां मचले हैं। काश वे मित बने सदा दिल से, छवि वही अरु दिलों स तड़पे हैं। आज फिर से मुझे लगा नूतन, छवि वही थी सुरम्य नजरे हैं। नाज है उस दिलों वफ़ा पर अब, होठ उसके सजी सु प्याले हैं। प्यार मैं मधुर लूटता हूं प्रिय, शौख सब ही मुकाम वाले हैं। मन मजा से चले सदा देखो, भूमि पर आकर्षक नजारे हैं। तार दिल के बजे चले यूं ही, नयन में रख हया कजरारे हैं। हार बन जा गले लगा मुझ को, रूप रंगी बला कि सुनहरे हैं। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍🏼 जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....