व्यक्तित्व के विकास में विचारों की महत्ता::
मनुष्य विचारशील प्राणी है। प्राणी जगत में उस जैसा विचारवान प्राणी कोई नहीं है। वह मरते दम तक अपने जेहन में विचारों को समेटा रहता है। आपने गौर किया होगा कि जब हम सोते हैं, तभी हमारे विचार शांत होते हैं। लेकिन, कभी-कभी तब भी शांत नहीं होते। वे ख्वाबों के माध्यम से कोई योजना, कोई चिंतन, कोई विचार, कोई कार्यप्रणाली लेकर हमारे दिल-दिमाग को मथते रहते हैं।
विचार कभी उसे उन्नति की ओर ले जाते हैं; कभी अवनति की ओर। व्यक्ति विचार करके ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचता है कि कोई कार्य करना उचित है या अनुचित। विचार के माध्यम से ही जब उसे महसूस होता है कि कोई कार्य उत्तम है, फायदेमंद है, तब वह उसे पकड़ लेता है। उसपर कार्य करना शुरू कर देता है। इसका उल्टा भी उतना ही सच है।
इसी तथ्य की ओर इंगित करते हुए स्वामी विवेकानंद ने भी कहा है कि हमारे व्यक्तित्व की उत्पत्ति हमारे विचारों में हैं, इसलिए ध्यान रखें कि आप क्या विचारते हैं? यह अत्यंत महत्वपूर्ण है; क्योंकि विचारों का असर दूर तक जाता है।
मनोचिकित्सकों का अभिमत है कि दिनभर में हमारे मन में तकरीबन 1500 विचार आते-जाते रहते हैं, जिसमें से केवल 500 विचार ही आवश्यक होते हैं। बाकी निस्सार व निरर्थक होते हैं। जो विचार असरकारक होते हैं, उसका असर दूर तक होता है। इसलिए ऋषि-मुनि विचारों पर नियंत्रण कर ब्रम्हत्व को प्राप्त करते हैं।
हालांकि विचार आएंगे, उनका आना तय है, वे सिद्ध संत-महात्माओं तक को नहीं छोड़ते; परंतु खेतों में उग आए विनाशकारी खरपतवार की तरह उसकी साफ-सफाई होती रहनी चाहिए। ऐसा ही कुशल विचारक, चिंतक और लेखक करते रहते हैं। वे काम के विचारों की खान बना लेते हैं। बेकाम विचार को घूड़े में डाल देते हैं और काम के विचारों से अपने उज्ज्वल भविष्य का निर्माण करते हैं।
विचार करें कि किसान खेतों में जब धान बोते हैं, तब सिर्फ धान ही बोते हैं। पर, उसके साथ अनचाहे धास-फूंस भी उग आते हैं। धान की बढ़ोतरी व विकास के लिए खरपतवार को उखाड़ फेंकना जरूरी होता है।
यही बात विचार के संबंध में भी लागू होता है। हमारे जेहन में अच्छे व बुरे विचार आएंगे। हमें बस इतना करते जाना है कि अच्छे विचार पुष्ट होते जाएं और गंदे व बुरे विचार डिलिट होते जाएं। तभी हम अच्छे विचारों से लाभ उठाकर व्यक्तित्व में निखार ला सकते हैं।
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