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नाराऐ हिन्द

Amit Kumar prasad 30 Mar 2023 कविताएँ दुःखद Motivational and inspirational poem 15367 0 Hindi :: हिंदी

हिन्द लीख रहा कर्म शुद्धा का, 
संघर्षों कि कथा को मान दिया! 
अमर पवन, जलधार, तरू - तट, 
धरा को पावन धाम किया!! 
                  कभी मिली अमर रस महा हिन्द को, 
                  कभी संघर्ष हिन्द को वारा है! 
                  कभी मिली न न्याय कर्मों को भी, 
                  जो हिन्दुस्तान का नारा है!! 
न्याय, धर्म का महा शुलोक,
लिख कर करके कर परम पुज्य! 
ममता के वारे अमर शुद्धा, 
हिम्मत प्रेम पर सर्व पुज्य!! 
                     हम देते रहें ज्ञान जगती को, 
                     देतें ही रहेंगें अभीनंदन से! 
                     झुटी निष्ठा और साथ ताकत का, 
                     तोड़ेंगें कलम कि दिक्क्षा से!! 
अमर शुधा का मान, महा कर्म, 
ज्ञान महा दाने दानम,
सर्वे ज्ञान दाने महा दान्यत:
परम सु: ख: म संताप कर्म!! 
                         न्याय दलित न हुई कभी, 
                         ताकत कि चाहे पुज रहे! 
                         धरा पे धर्म कि छाया रहती, 
                         कर्मों के बल का गुंज़ कहे!! 
गुंज रही वादी कि तड़प्प,
है धड़क - धड़क कर कह रहा फ़िज़ा! 
है पुज़ रहें कलिया भी कर्म को, 
अमर हो रहा देश मेरा!! 
                         संघर्ष से कवलित देश मेरा, 
                         पर नमन करूं बलिदानो को! 
                         जो आगे थें उन्हे नमन मेरा, 
                         पर प्रेम निस्वार्थ दिवानों को!! 
कुछ ने वारा अपना हिम्मत, 
कुछने शोहरत को वार दिया! 
धन्य भरत को बनाने वाले, 
जिसने भारत को नाम दिया!! 
                     अमर सुयश ममता भी म्मुज़स़ीम, 
                     अधिकाधिक तेज़ को दिप्त करे! 
                     जहां शेर को शेरनी पाले, 
                     उस धरा को हिन्दुस्तान कहे!! 
कह गये अमर रस कि गाथा, 
हम पढ़े पढ़ विरती ज़गा रहे! 
राजा भी एक रंक भी एक, 
जब समय न्याय के धार चले!! 
                           हर धारों को हम धर - धर के, 
                           कलम समय के साथ चले! 
                           है अमर दिव्यता कर्म प्रबल, 
                           भारत को भारत मात् कहे!! 
चल पढ़ा कलम रस भरने को, 
साहित्य भी नि:छल मान लिया! 
हिन्द लिख रहा कर्म शुद्धा का, 
संघर्षों कि कथा को मान लिया!! 
                            है ये निष्ठा जो जगाती है, 
                            जगती को कर्म शीखाती है! 
                            अम्बर भी पुजता कर्म अमर, 
                            ये ज्ञान अमर यश गाती है!! 
जो चला दृश्य को करके अमर, 
हर पथ को पथ - पथ पर नाम दिया! 
जिससे अमर पवन जलधार तरू  - तट, 
धरा को पावन धाम किया!! 
 
    कवी  :-  अमित कुमार प्रशाद 
    Poet :-  Amit Kumar Prasad

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