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बचपन

Sakshi Srivastav 30 Mar 2023 कविताएँ बाल-साहित्य बचपन 96520 1 5 Hindi :: हिंदी

ना हँसना एक बहाना था
ना रोना किसी से छिपाना था
ना थी कोई जरूरत, 
ना कोई जरूरी अफसाना था
वो बचपन का मौसम भी कितना सुहाना था.. 
गिरकर उठना,  फिर गिर जाना
दौड़ते दौड़ते घुटनों का छिल जाना
हर चार कदम पर गोद की सैर लगाना
हकीकत की दुनिया में सपनों को सजाना था...
वो बचपन का मौसम भी कितना सुहाना था....... 

थे अपने जहाज़ बारिश वाले पानी में
था चाँद भी अपनी लोरी वाली थाली में
कल का था कुछ पता नहीं
कितना रईश वो जमाना था.... 
वो बचपन का मौसम भी कितना सुहाना था....... 

चाचा चौधरी की किताबें
चंपक लाल का तराना था
ना थी गम की जुबां
ना जख्मों का पैमाना था
खबर ना थी सुबह की
ना शाम का ठिकाना था
क्यूँ हो गये हम बड़े
हर मौसम में वो मौसम ही सुहाना था
वो बचपन का मौसम भी कितना सुहाना था....... ... 🙏


Comments & Reviews

Sakshi Srivastav
Sakshi Srivastav Excellent

1 year ago

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