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वेदना

Abhinav chaturvedi 30 Mar 2023 कविताएँ दुःखद Abhinav chaturvedi 58330 0 Hindi :: हिंदी

दर्द के आँसू, मन की बात कहते हैं।
कई दफ़ा आंखों में दब कर, तो कभी बयां बहकर करते हैं।

सीने में गुज़रे सारे लम्हे लफ़्ज़ों पे आ जाएं,
बादलों की तरह आंखों पर छा जाएं,

पैबस्त लम्हो की शरारत अगर ऐसी हो।
सुकून की जगह दर्द-ए-लम्हात जैसी हो।
फिर तो खामोशियाँ ही रहेंगी
शोर मचाएंगी।
गुज़रे लम्हो को अकेली याद दिलाएंगी।
आंखों से ओझल होकर के।
कभी बोझ सी बन कर के।
कभी रातों में नींदों में,
कभी गज़लों में गीतों में।
कभी दिन के उजाले में,
वही अंतर्मन के जाले में।

हवाएं फिर से खींच कर यादों के पास ले जाएगी,
फिर मन को टटोलने जैसे, राग लगाएंगी।

दिन ढलने के इंतज़ार में हम बैठे रहेंगे,
दिल मायूस मत हो "कैसे कहेंगे"।
रात को युहीं अकेले कोने में सिसकते रहेंगे।

जब दर्द के आलम हों,
भरी भीड़ में हम,अकेलापन, और साथ हमारा गम हो।
तब दर्पण में चेहरा अपना पराया लगेगा,
खुद का आंसू बहाना खुद को छोड़, सबको जाया लगेगा,
समय बदला हुआ-
जो हुआ, सो हुआ,
कहने वाला भी एक समय पर, इंसान नया लगेगा।
ये कहानी नही है,
केवल कविता, शायरी नही है।
ये अकेले रात में लिखा गया एहसास है।
केवल मुझसे ही सुनोगे, मेरी ज़ुबानी यही है।

सही सब रहते हैं,
गलत कोई नही होता है।
सब अपने मन का सुनते हैं,
हर कोई अपनेपन का बीज नही बोता है
मैं नही मेरा दिल पागल है,
देखो बिना बात रोता है।

ये ज़ुबानी मेरी है, हां मेरे दिल का शोर है।
मेरा आज नही ये मगर,
मेरा गुज़रा हुआ दौर है।

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