कविता पेटशाली 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक 66621 0 Hindi :: हिंदी
अरसे बाद,खुद को पहचान पाई हूं, ये मेरे अहसास की सुगन्ध है,। समय का इक पहलू ,मेरा बड़ा भयभीत रहा , फिर भी मुसाफिर इक जिन्दाबाद रहा,। ज़िन्दगी का वह मोड़ क्या रहा होगा, जहां सात साल संग में एक बेजोड़ रहा, वह फेंक गया उल्टे दस्तावेज की तरह , यकीं नहीं मानोगे नामुराद एक इतना फरेब रहा,। कागज भी सिसक गया उन भयानक तस्वीरों से , जहां कविता में इतना द्वेश रहा,। चहरे ~चहरे को देख चिलाती , खुद को आईने में देख नहीं जान पाती ,। बस प्राण ही इक शब्द मुझमें शेष रहा ,।। इस्तेहार आज भी मेरे वहीं के वहीं है,। मानो यह अहसास जानते हैं,मुझे किसी पुष्प की भांति,। मैं ,सोचती हूं,इन्हें चाहिए फिर से इक खिलखिलाती कविता,। जिसके अनुकरण में होती है ,इक नई भोर, जिसकी ध्वनि से आती हो बच्चे के होंठों पर मुस्कान,। यह मेरे अहसास ही है,जिन्होंने वक़्त रहते नहीं मिटने दिया एक किरदार,।। अरसे बाद ,खुद को पहचान पाई हूं,। ये मेरे अहसास की सुगन्ध है,,।। कविता पेटशाली ,
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