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अरूनोदय की आश लिए

Amit Kumar prasad 30 Mar 2023 कविताएँ देश-प्रेम This poem is best inspiration of preparing Nation. 14137 0 Hindi :: हिंदी

मैं सोंच रहा था पवन तपोवन, 
अंतर मन के दृड़ चेतन से! 
अंधकार की विफल चेष्टा, 
अरूनोदय की आश लिए!! 
                       करूण चेष्टाओं की ध्वनी, 
                       सफल विफल प्रकाश भरे! 
                       मन विलीन सिर्फ कर्मो मे,
                       ये तनिक नही विश्राम करे!! 
बन चला जगत इस वादी मे, 
जगती को पुष्प चढ़ाने को, 
मेरा कर्म विलिन अविधाओं मे, 
जगती को अमर बनाने मे!! 
                         है अचल मेखलाओं का विश्व, 
                         धरनी धरती का वाहक है! 
                         हैं करून गाथाएं नमन करे, 
                         विरती जगती का दायक है!! 
पूज्य है सारे कर्म  क्षेत्र, 
जगती भी देती त्राण यहां! 
अमर विश्व का पुन्य शुलोक, 
जय जगदम्बे जय भारत मा!! 
                         हर दील की आरज़ू त्रिप्त भयी,
                         भारत को स्वर्ण बनाना है! 
                         राष्ट्र ध्वज गर नही उड़े, 
                         भारत को स्वर्ण बनाना है!! 
ये दिल कि तम्मना अविचलताओं की, 
इक नुतन विश्व का शुभाश लिए! 
अंधकार की विफल चेष्टा, 
इक अरूनोदय की आश लिए!! 

‌ Poet :-  Amit Kumar Prasad
 कवी   :-  अमित कुमार प्रशाद

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