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दास्ताने चाह की

Amit Kumar prasad 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक Motivational Poem Or Inspirational Sonet 17719 0 Hindi :: हिंदी

युं तो हस्ती हैं जहां, 
मुस्कुराहट नाम कि! 
अधरों मे हलचल नम हुई, 
दास्ताने चाह की!! 
             अविचल धरा कि चल जो ईच्छा, 
             अज़र और अविचल धरा, 
             कर - कर के कोशिश विफल चाहतों पर, 
             हो के र्निभय चल पड़ा!! 
पड़ती कहीं हैं मुश्किलें, 
मिलता नहीं कहीं छाह भी! 
ये अर्श का परामर्श है, 
जो दास्तान हैं राह की!! 
                         राहों मे तन्हा चल पड़ें, 
                         चाहतों से भरित पुरूष! 
                         देतें चले कुछ गुण धरा को, 
                         कुछ को मिले धरा का गुरूत्व!! 
अपने भी हिम्मत तोड़तें हैं, 
दास्तानें गर्दिशों के राह पे! 
चलती धरा , चलती फ़िज़ा, 
बस चाहतो के राह पे!! 
                   झुकता नही ज़ो मुश्किलों पर, 
                   ये र्दद हैं विधा: कि, 
                   गिर कर सम्हलना मंज़ील परखना, 
                   ये र्दद बस है चाह की!! 
चाहोंं से राहें खिलखिलाकर, 
राहीं कर्म को देतीं सदा! 
हैं विजय राहें तख्ते़ं करम, 
मंज़ील को पाना है ज़ुदा!! 
                 है राह तन्हा दिप्ती से औझें,
                 लिप्त संघर्षों का सुबह और शाम भी, 
                 करती धरा पर चाहतें परिश्रम, 
                 कोशिशें विश्राम भी!! 
गर कोशिशों को पार करके, 
चाहत का दामन थाम लो! 
कर - कर के मेहनत कर्म को, 
भारत रत्न का नाम दो!! 
                       रत्नो कि किश्मत तृप्त होती, 
                       मेहनत, कर्म, इमान से! 
                       डरती नही है चाहतें, 
                       समा के अचल अंज़ाम से!! 
ईक मुस्कुरातें चेहरे के पिछे, 
होता संघर्षों का र्दद बड़ा! 
जाके जरा नदियों से पुछो, 
कितना अचल है गम सहा!! 
                        मिलते यहां पर चाहते, 
                        चाहों से मतलब तौलते! 
                       बस मुस्कुराहट दे के चाह को, 
                       राहों मे तन्हा छोड़तें!! 
है अज़र और कल - कल ये व्यथा, 
अविचल यहां आराम भी! 
युं तो हस्ती हैं ज़हां , 
मुस्कुराहट नाम कि!! 
                         गर अध्म करलों मेहनत यहां, 
                         तो कर्म जगती गाएगा! 
                         ये गीत और संगीत ज़ग मे, 
                         हिन्दुस्तां कहलाएगा!! 
ईस चाहतों का र्दद ज़ीवन, 
चाहत से धड़कती हिन्दुस्तां! 
चाहत है करती मंज़ील को रौशन, 
चाहों से मिलती राही को राह!! 
                          है मुस्कुराहट ईस ज़गत मे, 
                         पथ - पथ के पथ पत्थराव सी! 
                         अधरों मे हलचल नम हुई, 
                         दास्ताने चाह की!! 
मै रहूं या ना रहूं, 
बस गीत ये रह जाएगा! 
ईस ज़गत से ऊस ज़गत तक, 
साहित्य रंग दिख लाऐगा!! 
                      हो के कलम भी कमल कवंलीत, 
                      दिखलाती जगत को राहें यही! 
                       है कर्तव्य का निस्क्रस निश्छल, 
                       दास्ताने राह की!! 
युं तो हस्ती हैं ज़हां, 
मुस्कुराहट नाम कि! 
अधरों मे हलचल नम हुई, 
दास्ताने चाह की!! 

संगितकार     :-  अमित कुमार प्रशाद
সন্গিতকার   :- অমিত কুমার প্রশাদ
Soneter   :-  Amit Kumar Prasad

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