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घासों में बांस

Rambriksh Bahadurpuri 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक #Ambedkar Nagar poetry#ghason men bans Kavita#Rambriksh kavita#samajik kavita#manavta per kavita 15976 0 Hindi :: हिंदी

जगत में किसका कितना मोल। 
         क्या मानव पौधा लतिकाएं!
         खोज रहे विस्तार दिशाएं!
भूल चले अपनेपन खुद के, जीवन के सबसे अनमोल। 
         जगत में किसका कितना मोल। 

         घासों में उगता बांस एक
         कुल के रिस्ते को बिना देख
बढ़ गया गगन की ओर ओढ़, खुद के उन्नति का खोल। 
         जगत में किसका कितना मोल। 
         

           छोड़ धरा पर वह अपनो को
           बुनता चला गया सपनो को 
दिन दूना वह रात चौगुना, बढ़ चलने का पिटता ढोल। 
           जगत में किसका कितना मोल। 

           बढ़ता चला गया अति दूर
           खुद पर करता गया गुरूर
पहुंच गया जब बीच गगन में, बोला अतिशय बोली बोल। 
           जगत में किसका कितना मोल। 


           ऐसा बढ़ना कैसा बढ़ना
           अपनों में जब हो ना रहना
बिन छाया बिन फल का जीवन,न हो अपनों से मेल जोल। 
           जगत में किसका कितना मोल। 
             

            लेना चाहो अगर अंकों में
            शूल चुभोता है आंखों में
तेरा कौन भरोसा कब तक,जिसका अपना राग हिंडोल। 
            जगत में किसका कितना मोल। 


            काम अगर है आता भी तू
            बस मुर्दा को जलाता है तू
 गर ना आया काम किसी के, तो कुछ करने को टटोल। 
            जगत में किसका कितना मोल। 


            जो तेरे छाये में आता
            उसको भी जीने ना देता
स्वार्थ भरा जीवन से अच्छा, खुद को खुद से कायर बोल। 
            जगत में किसका कितना मोल। 


             पशु पक्षी संग समरस रिस्ता
             बिन तरु का है जीवन जड़ता
जहर फेफड़े में भरने से, अच्छा है अमृत तू घोल। 
             जगत में किसका कितना मोल। 



रचनाकार-रामवृक्ष, अम्बेडकरनगर

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