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हार की जीत

Rambriksh Bahadurpuri 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक #सामाजिक कविता#हार की जीत कविता#rambriksh kavita#Ambedkar Nagar Poetry#rbpoetry#RB kavita#नयी कविता#आज की कविता#हार पर कविता#जीत पर कविता#सबसे अच्छी कविता#उत्साह की कविता#उत्साह भरी कविता#जीवन से जुड़ी कविता#जीवन की कविता #पतंग की कविता#स्वतंत्रा की कविता#आजादी की कविता 32250 0 Hindi :: हिंदी

स्वतंत्र चिड़िया ही बनाती है घोंसला
बंद पिंजरे में तो बंद हो जाती है हौसला 
हारी कटी पतंग समझते हैं जिसको 
असर में स्वतंत्र उड़ चली मनचली है
कहां पर गिरेगी कहां पर रुकेगी 
कहां है ठिकाना ना उसको पता है 
किस्मत का खेल है ही निराला 
गुलामी के दौर से ही तो नहीं है 
पुस्तक का थैला विद्यालय का रास्ता 
ख्यालों में सजाए हुए स्वर्ण सपना 
लौट करके आना सिमट जाना मां से
बचपन में होता पराया भी अपना
था डूबा इसी ख्याल में एक बालक
गया टूट जैसे लरी मोतियों का
बोला जब मालिक अरे सुन रहा है 
धोना है थाली ग्राहक है बैठे
उधर तू खड़ा क्या कर रहा है
धुआ सा अंधेरा हुआ मन विकृत 
चित्र में ही चित्त हो गया सपन सारा
सूरज उदय कभी ना हुआ है 
न आता अंधेरा खुद ही कभी भी 
सोंचा जो जैसा हो वैसा ही पाया
हुआ भाग्योदय दिशा जब सही है
गिरकर उठना उठकर गिरना 
जीवन विरोधी सदा ही रही है 
हार दिल से लगी है गले में पड़ी है
हार की ही जीत हमेशा हुई है
         
         रचनाकार-Rambriksh ; Ambedkar Nagar

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