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काठ की नाव

Rambriksh Bahadurpuri 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक काठ की नाव कविता#काठ की नाव कविता रामबृक्ष#प्रेरणार्थक कविता#अम्बेडकरनगर पोइट्री#पोइट्री रामबृक्ष#नाव पर कविता#नाव पर बाल कविता# 15728 0 Hindi :: हिंदी

काठ की नाव तू बढ़ता चल,
दो चार पथिक ले अपने संग,
जिसका न अपना मंजिल पथ,
फैला सागर का गहरा जल
बने रुकावट लहरें हर  पल  |
काठ की नाव तू बढ़ता चल | |

           उठ ऊंचे-ऊंचे जलधि तरंग,
           मानो प्रलय का महा निषंग,
           पतवार का पंख लगाकर बढ़,
           भर दे पंखों में श्रम- गति बल |
           काठ की नाव तू बढ़ता चल | |

भर पवन वेग पतवार पंख,
हो जाय उदधि भण्डार खंख
जीवन व्यथित पथिक मन की
गिर गिर उठ उठ तू चलता चल |
काठ की नाव तू बढ़ता चल | |


           तु चाहे जिधर मुड़ जाय उधर,
           है कौन तुफान? रोके डगर,
           पतवार पंख मेंं ताकत भर,
           दे टाल मार्ग में पडा़ अचल |
           काठ की नाव तू बढ़ता चल | |

तू चलता चल बस बढ़ता चल,
हिम्मत विश्वास सजोता चल
मंजिल है दूर पर कठिन नही,
पंखो में जान तू भरता चल। 
काठ की नाव तू बढ़ता चल | |

           लग जाती डोर पतंगो में जब,
           उड़ जाती बीच बिहंगो में तब,
           क्यों समझ रहा निर्बल दुर्बल ,
           जल बीच मचा दे तू हलचल |
           काठ की नाव तू बढ़ता चल | |

तुफान बवंडर से मत डर तू,
प्रलय पथ पर हो मत थक तू,
लौट अगर आया तू वापस,
बद्तर है जीने का वह पल |
काठ की नाव तू बढ़ता चल | |


           सागर गहरा या उथला जल,
           कर रहा भयावह कोलाहल,
           समझ अब साहिल दूर नही
           पथ पर भर मन में कौतूहल |
           काठ की नाव तू बढ़ता चल | |

     
तू मददगार पथगामी का,
बन संगी लौह अनुगामी का,
काठ का है ,तू  कठोर नहीं,
पर हित में जीवन जीता चल | 
काठ की नाव तू बढ़ता चल | |
संगत में कील तैर तेरे,
          बदला अपना स्वभाव कड़े,
          तल ठण्ड नीर छत गर्म धूप,
          पड़ कठिन मुसीबत सहता चल |
          काठ की नाव तू बढ़ता चल | |   10

 गैरों की राह बनाता तू ,
 सपनों की चाह सजाता तू ,
 निज सहज रूप में संयत हो
 ले भार तैर चल निर्मल जल |
 काठ की नाव तू बढ़ता चल | |   11
 
          नाव नहीं जीवन का पुल तू,
         आशा अटल विश्वास अतुल तू,
          उस छोर खड़े दो चार पथिक
          उनको भी पार लगाता चल |
          काठ की नाव तू बढ़ता चल | |   12

क्यों भटक रहा है पथिक भला,
तरणी बन तरुण टाल बला,
भटके राही का हासिल तू
विश्वास भरोसा बना अटल |
काठ की नाव तू बढ़ता चल | |   13

          नील गगन सा नीरधि फैला,
          प्रातः हो या शाम सुनहला,
          झिलमिल जल,टिम टिम तारों में
          कलरव सुंदर धुन गुनता चल |
          काठ की नाव तू बढ़ता चल | |  14


 तुफान भयंकर  या हलचल हो,
 द्वंद्वो से पथ भरा पड़ा हो,
 वक्ष चीर बढ़ चल बाधा का
 अजय विजय खुद को करता चल |
 काठ की नाव तू बढ़ता चल | |  15

तू निडर,निर्भय प्रबल द्योतक,
परिस्थितियां कर दे नत मस्तक,
तू जीवन जी कर पर हित में
नाम अमर तू करता चल   |    
काठ की नाव तू बढ़ता चल || 16



    



          रचनाकार-रामबृक्ष, अम्बेडकरनगर

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