Rambriksh Bahadurpuri 30 Mar 2023 कविताएँ धार्मिक #धार्मिककविता#सामाजिक कविता#कैकेई संताप#रामायण पर कविता#राम लीला पर कविता#राम वन पर कविता#राम को वन क्यों भेजी कैकेई कविता#राम का वन जाना#कैकेई की जीत#कैकेई की सोंच#कैकेई की ममता पर कविता#कैकेई का राम के प्रति स्नेह#Ambedkarnagar poetry#Rb poetry#poetry by rambriksh#Rambriksh Kavita#kaikei santap by Rambriksh#कैकेयी का चरित्र चित्रण#कैकेयी का त्याग#कैकेई का प्रजा से संवाद#कैकेई राम को वन क्यों भेजी# 30034 0 Hindi :: हिंदी
रोके रुके न नीर नयन से ,राम चले जब छोड़ भवन से जड़ चेतन हो शून्य चले थे,कुछ कहे कौन हो मूक बने थे दु:ख को सहे जब दे विधाता,यहां तो मैं ही थी दु:ख दाता मेरे राम ! सुमाता मैं हूं,जग कह रहा कुमाता मैं हूं कहे कुलक्षिणी निष्ठुर नागिन,जग नाम तेरा न लेगा पापिन कुमाता का अपयश मैं सहूंगी,मैं हूं माता,मां ही रहूंगी भले न जग स्वीकार करेगी,बन बैरी तिरस्कार करेगी मुझे पता मैं वर क्यों मांगी,बन बैरी अनुराग विरागी पुत्र परिवार ही ब्रह्मअखंड है,अखंड का खंडित दृष्टि पाखंड है लोभ पाप का जड़ होता हैपर लोभ का कुछ कारण होता है मातृत्व दैहिक मात्र नही है,मां तारण कारण धात्र रही है || क्या पुत्र शोक में व्यथित नहीं हूं?,मैं भी पत्थर दिल की नहीं हूं || कुशल नेतृत्व का समय यही है,समय अनुकूल हो रहा सही है || मंथरा के मति के मत जानी,मन मंथन कर अन्ततः मानी राम कुशल निर्भीक बलशाली,सूर्य वंश के यश की लाली राजा बने बस प्रजा जाने,दूर सुदूर यश कौन बखाने मोह प्रेम का निज बंधन है,कर्म क्षेत्र में प्रतिबंधन है राज चाहता राम राज को,मैं चाहती राम राज्य को धर्म कर्म साधन साध्य को,राग अनुराग निहित आराध्य को क्या राम बने बस दशरथनन्दन,या बने राम जग के जगनंदन? कली प्रेम है पुष्प ज्ञान है,प्रकृति का भी यही विधान है प्रजा प्रेम जो राम संग लागे,यह प्रेम निज स्वारथ साधे ज्ञान कपाट खोल कर देखी,जन हित हेतु राम वन भेजी कर करुणा संताप कैकेई,दे आशीष की राम विदाई रचनाकार-रामबृक्ष, अम्बेडकरनगर
I am Rambriksh Bahadurpuri,from Ambedkar Nagar UP I am a teacher I like to write poem and I wrote ma...