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टिकाकरण अधिकार अपना

Amit Kumar prasad 30 Mar 2023 कविताएँ देश-प्रेम This poem is based on Health care and most of favour has been done for Vaccination. 14472 0 Hindi :: हिंदी

कर्म योग अती पावन निष्ठा, 
छल भी छलीत हो जाती है! 
बलवान कि हिम्मत भी आकर, 
अधरों मे दलीत हो जाती है!! 
                         पर्वत कहां झुकते है नदियों के, 
                         दो चार झरोखे खाने से! 
                         किसमत कि कशिश पुरी होती, 
                         आत्म निर्भर हो जाने से!! 
ये महा प्रबल भ्रमित आशाऐं, 
कभी दवा का काम करे! 
वरना हिम्मत को समय कहां जो, 
आशाओं का नाम करे!! 
                   कहता है नही नियती कि दिशा कि, 
                   आत्म बल धारीत करलो! 
                   धरा बलीत हो जाऐगा, 
                   धरती पर आशावान बनो!! 
मिलती है राह उस राही को, 
जो समय कि राह पे चलता है! 
राह मंजील दो कर्म अलग, 
ये अलग - अलग निरखता है!! 
                          कर्मो के इस पावन मंदिर को, 
                          आर्यावर्त है नाम मीला! 
                          जो झुकि न किसी भी दावों से, 
                          इससे वसुधा को त्राण मिला!! 
है जुझ रही ये कर्म की भुमी, 
हम इनकी दृढ़ चेतन है! 
आओ इनको स्वास्थ पुर्ण बनाऐं, 
स्वास्थ धरा का अभीनंदन है!! 
                    झुकि नही कभी कर्म का धरोहर, 
                    हम इनको न झुकने देंगें! 
                    कर अभीनंदन फिर विकाश को, 
                    हर कांटों को हार दिखा देंगे!! 
गुजरे वक्त को ला नही सकते,
भले कर्म का धार अपना! 
हम खुद को बचाए जगती का संरक्षण, 
टिका करण अधिकार अपना!! 
                          नही कोई जो अंधकार को, 
                          दिपक से ज्योत कर सकता है!
                          पर एक एक दिपक जो वारे, 
                          अंधकार हर सकता है!! 
अहंकार हारे किशमत से, 
कल भी कली हो जाती है! 
कर्म योग अती पावन निष्ठा, 
छल भी छलीत हो जाती है!! 
                         गर्दिश के चिरौंदों मे आकर, 
                        किशमत भी भ्रमीत हो जाती है! 
                        बलवान की हिम्मत भी आकर, 
                        अधरों मे दलीत हो जाती है!! 

   स्वस्थ भारत दृढ़ भारत आत्म र्निभर विकाश 
                             प्रभा, 
  अखंड ज्योत्सना कर्म तपो बल आर्यावर्तें नमो 
                              नम:!! 
                    
                           जय हिन्द

कवी  : - अमीत कुमार प्रशाद

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