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उड़ते बादल - खींच खींच ले मन को जाते

Rambriksh Bahadurpuri 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक #Ambedkarnagarpoetry/उड़ते बादल 39500 0 Hindi :: हिंदी

खींच खींच ले मन को जाते
मीत मनोहर वे बन जाते ,
उमड़- घुमड़ कर आगे पीछे 
उड़ते बादल कहां को जाते |
कुछ नाचते खुशी मनाते
कुछ के आंसू झर झर जाते ,
सुख दु:ख का यह संगम कैसा ?
 नई नवेली दुल्हन जैसा ,
आंखों से जो जल बरसाते
उड़ते बादल कहां को  जाते ||
उनके सुख-दु:ख से क्या हम को?
उनके दु:ख से ही सुख हमको ,
अपनापन तो दूर खड़ी है
आशा केवल यही लगी है,
जल जीवन हमको दे जाते 
उड़ते बादल कहां को जाते |
खुद सुखी संसार सुखी है
गैर के दु:ख से कौन दुखी है ?
मानव का स्वभाव निराला
बादल में भी गोरा काला,
लौट कर वापस क्यों नहीं ?
उड़ते बादल  कहां को जाते ?

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