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दिखावा हो गई दीवाली

akhilesh Shrivastava 30 Mar 2023 कविताएँ धार्मिक आधुनिक समय में दिवाली मात्र दिखावा बनकर रह गई है । 10806 0 Hindi :: हिंदी

*दिखावा हो गई दीवाली*

हमें याद आती है अपने 
बचपन की जगमग दीवाली
कच्चे मिट्टी के दियों से
रोशन होती थी दीवाली।।

चूने मिट्टी डिस्टेंपर से
 घर में पुताई होती थी
साफ सफाई घर घर में
करवाती थी दीवाली।।

 सभी भाई बहिन के कपड़े
एक जैसे बन जाते थे
माता और पिता के कपड़े
कभी कभी बन पाते थे।।

देखकर बच्चों की खुशियां
उनकी हो जाती दीवाली
कम पैसों में भी हम सब
खूब मनाते थे दीवाली।।

प्रेम -प्यार की फुलझडियों से
रिश्ते रोशन होते थे
धान की लाई -बताशा
से ये मीठे रह पाते थे।।

बूंदी रसगुल्ले बर्फी के
पकवान बन जाते थे 
दस रुपए के पटाखे हम
ग्यारस तक जलाते थे ।।

पास पड़ोसी के घर जलता
दीपक रखकर आते थे
ज्योति प्यार के रिश्तों की
हम घर-घर में पहुंचाते थे।।

दोस्त पड़ोसी रिश्तेदारों के
घर पर हम जाते थे
पांच दिनों तक दीवाली का
हम त्योहार मनाते थे।।

कच्चे घरों में रहकर भी
तब रिश्ते पक्के होते थे
मिट्टी के दियों से हमारे
रिश्ते रोशन होते थे।।

आधुनिक परिवेश में अब तो
भव्य हो गई दीवाली
आपस के रिश्ते -नातों में 
फार्मल हो गई दीवाली


धन वैभव,एकल परिवार तक
सिमट कर रह गई दीवाली
अब समाज और रिश्तों में 
दिखावा हो गई दीवाली।।


रचयिता -अखिलेश श्रीवास्तव जबलपुर

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