Ravina pareek 25 May 2023 कविताएँ दुःखद ख्वाइश 7566 0 Hindi :: हिंदी
परिंदों के संग उड़ने की ख्वाहिश थी हमें, पर हम खुद को ही गिरा बैठे। परायों को अपना बनाने की ख्वाहिश थी हमें, पर हम अपनो को ही पराया बना बैठे । बड़ा बनने की ख्वाहिश थी हमें, पर हम खुद को छोटा बना बैठे। सब अच्छा करने की ख्वाहिश थी हमें पर हम खुद को ही बुरा बना बैठे। जीतने की ख्वाहिश थी हमें, पर हम खुद को ही हरा बैठे। मंजिल की ख्वाहिश थी हमें, हम रास्ते को भी भुला बैठे। जीतने की चाह में हम, खुद को ही हरा बैठे।।