Ruby Gangwar 08 Mar 2024 कविताएँ समाजिक तुम ऐसे गए, घर वीरान, वेदना का स्वरूप, 11854 0 Hindi :: हिंदी
तुम ऐसे गए ,घर वीरान कर गए, वेदना का स्वरूप चौगुना कर गए, जानती हूं फिर याद आओगे तुम हर बात में हमें, वो बीते दिन और जीवन भर की यादें, पर जो थे तुम्हारे भूल गए हो तुम सदा के लिए, अब तुम्हारे सिवाय ये दुःख किसको बताएं, अब हमारी जिंदगी उद्वेग की मिसाल कर गए, तुम ऐसे गए ,घर वीरान कर गए, वेदना का स्वरूप चौगुना कर गए, हम तुम्हारी सुध में मधुर गीत लिख रहे, मगर तुम न जानें किधर गुम हो गए, गर तुम होते तो ये जान पाते ,कि कैसे प्रकीर्ण पलों में खुश रहने के हम बहाने ढूंढ रहे, पहले जो वादा किया था जिंदगी साथ बिताने का ,फिर क्यों मुकर गए, तुम ऐसे गए, घर वीरान कर गए, वेदना का स्वरूप चौगुना कर गए।।