संदीप कुमार सिंह 05 Jul 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 4873 0 Hindi :: हिंदी
(दोहा छंद) रहे महल या झौंपड़ी,आती अवश्य मौत। हरदम मन में हो खुशी,इसे समझकर सौत।। जिनके अब भी झौंपड़ी,हैं वे असल गरीब। करें अगर श्रम यत्न से,बदले सदा नसीब।। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍🏼 जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....