संदीप कुमार सिंह 09 Nov 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है. जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभांवित होंगे. 13437 0 Hindi :: हिंदी
गरीबी ने सारे अरमानों को जला कर राख कर दिया, अपनों के भीड़ से सरेआम बाहर कर दिया। अपने ही समाज ने जिल्लत भरी जिंदगी है दी, जिंदगी की सारी कलियाँ ही मुरझा गई। आज ही जब है गर्क में, भविष्य की बात तो है दूर। कितने त्योहार आए और चले गए, दो वक्त की रोटी जुटाना ही गरीबी की जिंदगी। गरीब बाजार है जाता चका_चौंध से आंख फेर लेता, जरूरत का सामान भी पूरा नहीं है ले पाता। परिवार में एक अजब ही रहता सन्नाटा, लगता है है यह जन्म ही शाप। बच्चे रोते हुए सो जाता, उसे और खाना चाहिए था। खाना ही पूरा नहीं है हो पाता, कपड़े कहां से सुन्दर दे सकता। राम सेवक की बीबी कल दुनियाँ छोड़ गई, क्योंकि उसके पास इलाज का पैसा नहीं था। रामू अभी 18साल का भी नहीं हुआ, गरीबी से त्रस्त वह कड़ा श्रम है करता। गांव_समाज को भी गरीब ठीक से नहीं जान पाता, दुनियाँ को जानना तो है एक सपना। गरीबी के काल में कितने कीमती जान समा गए, वक्त से पहले ही ये कीमती जान दुनियाँ छोड़ गए। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍️ जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....