Sunil suthar 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक किताबों का दुर्भाग्य, किताबों कि दुर्दशा, किताबों का घटता मूल्य, 10140 0 Hindi :: हिंदी
कविता:- क़िताबों का दुर्भाग्य.. रुसवा होकर करी बड़ाई ,फिर विरह अग्नि में देह जलायी मीत गया प्रदेश, सहेलिया धुँआ सू आँख गवायी , धूल मिट्टी और तम के सिवा.....कौन यहाँ मेरी हिफाजत करता..... रो-रो कर मैं किसे सुनाऊ,लिख-लिख कर उसने स्याही गवायी | प्रीत बिना सब मीत गवायी, बिन मर्यादा के जीत गवायी, अनर्थ हुआ इस देव भूमि पर,आँखे बंद कर रीत गवायी, कोलाहल संगीत मचा रहा बिन शब्दों के गीत कहाँ, सुन सको तो सुनो सब यारो, दीमक नें मेरी जिंदगी गवायी | काल कोठरी मे मुझे डाल कर बाबू नें फिर चाबी गवायी, शब्दकोशों की मुखर प्रवृति , आज मौन धारण कर बैठी हैं, बिन मात्रा के भाषा बनी, भाव गवा कर इस दिल नें....... फिर आकर मुझ मे आग लगायी..... . रस बहा कर कवित नें आज जहर की फिर घूट लगायी | आकार नहीं कोई अलंकार का .... छन्द आवारा होकर डोल रहे, वर्ण चुप, शब्द लुप्त, फिर वाक्य कैसे हा....हाकार मचाये, उपन्यास अनर्थ, कथा व्यर्थ, कागज नें बिन स्वार्थ के...देखों आँख मूद कर बाजी लगायी, सुन सको तो सुनो सब यारो, दीमक नें मेरी जिंदगी गवायी | आहिस्ता -आहिस्ता से पढ लें मुझे, सौं दरख्वास्त करके सौं ग़ज़ल लिखवायी, अन-गिनत चिंगारिया छुपी हैं, लफ्जो के इस दामन में... इक्कीसवीं के बारूदी हाथो में, देता हैं मुझे झूठा ख़्वाब दिखायी, हूँ खुला चेहरा, "कुमार" जिस रुख से पढ़ लें, मुझे में समायी हैं मोहब्बत की कहानी... . . सुन सको तो सुनो सब यारो, दीमक नें मेरी जिंदगी गवायी...|| सुनील सुथार