Jyoti yadav 08 Nov 2023 कविताएँ समाजिक बदलते दौर आज का 10409 0 Hindi :: हिंदी
मानवता शर्मसार हुई जब एक अबला लाचार हुई रूप बदले अंदाज बदले दया धर्म करने वालो के भी लिहाज बदले रोती बिलखती मदद की गुहार करी सबने मिलकर तमाशा देखा ऊपर से उसी पर थू थू कार करी ना किसी ने मदद को आगे आया ना किसी ने रोका सब के सब दूर खड़े सोचे यही क्यों हम इस झमेले में पड़े अपना तो चलाए नहीं चलता क्यों दूजे के लिए लड़े जिनके दिल में दिमाग था समझदारी की बात करी मसहूर तो खुब हुए लोगों में पर उसने भी ना इंसाफ करी देख अखबारों को चौक चौराहों पर करेंगे बातें जताएंगे फिकर देखो भाई कैसे बदल रहा है जमाना कोई हक ऐसे लोगों का बात करे वो संस्कृति समाज का जो चुपचाप देखते तमाशा बदलते दौर आज का ज्योति यादव के कलम से ✍️ कोटिसा विक्रमपुर सैदपुर गाजीपुर