Samar Singh 28 Jun 2023 गीत समाजिक प्रकृति अपनी सुंदरता फसलों, परिंदों और आसमां के रूप में दिखाती है। 6738 1 5 Hindi :: हिंदी
चल रही है छमछम हवाएं,। गीत गाके सुनाएं, ये सारी फिजाएं। हरी- हरी हरियाली, लहराये ये गेहूं की बाली। देखो झूम रही है तान में फसल, जैसे गा रही है मुस्कान में गजल। ये क्षितिज पे सिंदूरी बादल, बना रहे हैं सबको पागल। नशे में डूबी है सारी दिशाएँ। गीत गाके सुनाएँ, ये सारी फिजायें। पीली चादर फैली है सरसों की, प्यास बुझी है आँखों की, कई बरसों की। सारे भ्रमर निकले है लेके सितार, आसमां में छाया है कैसा खुमार। परिंदे बना के उड़ रहे कतार, जैसे जाना चाहते हैं बादलों के पार। ऐसा शमां कौन अपने दिल में न बसायें, गीत गाके सुनाएँ, ये सारी फिजायें।। रचनाकार- समर सिंह " समीर G"
9 months ago