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Yogesh Yadav 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक 81275 0 Hindi :: हिंदी

Technology की देन तुम थे 
वरना इस भीड़ में, एक दूसरे से परे इस दुनिया में, 
शायद ही कभी हम टकराते, हाँ शायद टकराते भी, 
पर रुक कर आँखों से आंखें शायद ही मिलाए होते अजीब हैं ना सब .......
जब उम्मीद कही कोने में जाकर. रूठ कर ज़िंदगी से बैठी होती हैं, 
तब बचकानी हरकतें करते करते कोई क़िस्सा बनने को तैयार होकर, 
ज़िंदगी मैं दस्तक ज़रूर देता हैं।
जैसे चाँद को आस लगी हो, उन रंगो को पाने की, 
जो बिना सूरज के और होते हुए चाँद के कभी रूबरू ना होते। 
जानकर भी आस लिए, वो ताकता रहता हैं, 
भूल कर उन अनगिनत तारो को, जो उसके लिए चमकते हैं। 
हाँ पर तुम और मैं क्या, कभी उस इश्क़ को समझ पाएँगे? 
जो ना मैंने कभी जताना चाहा, ना तुम ने कभी फ़ुरसत दी!

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