ऐ ज़िंदगी! बहुत हो गया हम से
तेरा यूँ सबक़ लेना
तू है तो सब कुछ है
मत ख़त्म कर हमारे प्रेम उमंग
और उल्लास को
ना भर इनकी जगह डर और
ख़ौफ़ को
ऐ ज़िंदगी !! कुछ तो रहम कर
अपनों से दूरी और अपनों के जाने
के डर को निकाल हमारे मन से
नही तो भूल जाएँगे हम जीना
क्या मरघट सी वीरान सी अच्छी लगेगी तुझे तेरी बनाई दुनिया
यूँ ना ख़त्म कर इसे
ऐ ज़िंदगी !! कुछ तो रहम कर
मासूम बच्चे मुरझाए से चेहरे लिए
युवा उदासीनता की चादर
ओढ़े बैठे हैं
क्या तुझे ज़रा भी तरस नहीं आता
बुजुर्गों को जिन्हें इस दुनिया
से जाना है लेकिन उनकी रूखसती इतनी
बेरहमी से तो ना कर कि
उन्हें अपनों का कांधा भी ना मिले
ऐ ज़िंदगी !! कुछ तो रहम कर
ख़ौफ़ के साए चारों तरफ़ से
हमें घेरे जा रहे हैं इसके शिकंजे से अब तू हमें बचा
अपनों से दूरियां अब तो हमें
नितांत अकेला किए जा रही है तूने जो हमें सिखाया था वही तू
छीने चले जा रही है
हम तो चले जाएंगे न लेकिन तेरी बनायी बैरंग बेजान दुनियाँ
क्या तुझे रास आयेगी ऐ ज़िंदगी !! कुछ तो रहम कर
पहले सी वह हसीन दुनिया
कहाँ चली गयी जिसमें
सब कुछ था
तूने जब तक साँस से दी है
उसे बस जीऐ जा रहे है
बाक़ी तो तैयारी तेरी हमसे
सब कुछ छीनने की लग रही है ऐज़िंदगी !! मुझे बता दें कि तू
कब पहले से होगी जिसका
शुक्रिया हमने तुझे कई बार अपने मनुष्य योनि में आने का।
दिया। तेरे प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष तेरे अस्तित्त्व
तेरे मूर्ति रूप तेरे एहसास
तेरे निराकार रूप तेरी आस्था सबसे विनती है कि तू अब तो
हमारी पुकार सुन लें
भूल जाएं हम कि कभी कोरोना
वायरस आया था
इससे अब तक जो क्षति हुई है
उसे हमारी सज़ा का अंत
समझकर हमें माफ़ कर दें
हमें माफ़ कर दें
ऐ ज़िंदगी !!कुछ तो रहम कर
जानती हूँ तू सब कुछ अच्छा
सोचकर कर रहा है लेकिन
इसके परिणाम कहीं उल्टे न
पड़ जाए
तू तो दूरदृष्टि ज्ञाता है तुझे हमारा
अंजाम सब दिख रहा होगा
लेकिन तू तो हम से आँखे फेरे
बैठा है कुछ तो कृपा दिखा अपनी
संतानों पर
ना बन इतना क्रूर कि तुझ पर
से भरोसा उठने का पाप
हम मोल ले बैठें
मैं जानती हूँ कि तू पहले सा पटरी
पर कुछ तो जीवन लाया है लेकिन कण कण में फिर भी डर
समाया है
जीएँ भी तो कैसे जीएँ
इस डर के साथ तू ही बता दे ऐ ज़िंदगी !! हम पर कुछ तो रहम
कर
कुछ तो रहम कर 🙏🙏
30 September 2020