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जिम्मेदारी-सुबहाँ सुबहाँ रोज जगा देती है

Raj Ashok 16 Jan 2024 कविताएँ समाजिक जिम्मेदारी 4548 0 Hindi :: हिंदी

कौन, 
सुबहाँ-सुबहाँ रोज जगा देती है। 
रात अन्घेरी को भगा देती है ।
सुबहाँ हो गई उठों
ऊमीद की आवाज़ से सवेरे 
की रोशनी दिखा देती है।। 
रूकती क्यो नहीं जिम्मेदारी
की  ये घड़ी ,
हर दिन नऐ काम का बोझ थमा देती है। ।
और फिर  
चल देते है। नऐ काम लेके ईश्वर का नाम
इस उमीद मे के अब सब ठीक होगा।
पर कुछ नहीं बदलता।
युही रहता है। फटेहाल ये जीवन
रोज सोचना........ 
हर दिन कमाता मेहनत से
दो वक्त की रोजी ........

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