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लालची खरगोश।

कुमार किशन कीर्ति 01 Jun 2023 कहानियाँ बाल-साहित्य लालच,गाजर,बुढ़िया 20531 0 Hindi :: हिंदी

बहुत पुरानी बात है।रामपुर गांव की सीमा पर एक बुढ़िया अपनी छोटी सी मड़ैया में रहती थी।बेचारी का कोई नहीं था।भीख मांगकर खाती और कभी-कभी गाँव वालों की सेवा करती।बुढ़िया की अच्छी स्वभाव के कारण सब लोग उसे बहुत ही मानते थे।
एक दिन की बात है।गाँव के जमींदार आए और बोले"बुढ़िया माई कहाँ हो?"
आवाज सुनकर वह आई।उसे देखकर जमींदार बोले"बुढ़िया माई, तुम्हारे घर के पीछे मैं गाजर की खेती किया हूँ।तुम बस रखवाली करती रहना,और जब खाने की इच्छा करें, तब एक-दो खा लेना।"
यह सुनकर बुढ़िया बोली"हाँ बेटा,तुम जैसा कह रहे हो, वैसा ही होगा।"
इस बाद बुढ़िया भीख मांगने नहीं जाती थी।बदले में जमींदार उसके घर खाने-पीने की वस्तुएं भेजवा दिया करता था।
मगर, एक दिन ना जाने कहाँ से एक भूखा खरगोश की नजर उस गाजर की खेत पर चली गई।जैसे ही वह खेत में प्रवेश किया।बुढ़िया बोली"अरे खरगोश, कहाँ जा रहे हो?"यह सुनकर वह डर गया।फिर डरते-डरते बोला"काकी,मुझे भूख लगी है।सोचा था एक दो गाजर खा लूँ।"
बुढ़िया बोली"नहीं,नही।यह जमींदार का खेत है।अगर उसके आदमी देख लेंगे तो मुश्किल हो सकती है।"
किन्तु,खरगोश बोला"अरे,तुम डरती क्यों हो?बस,मुझे एक-दो खा लेने दो।"वह रुआँसा हो गया।
बुढ़िया बेचारी क्या करती?उसे दया आ गई।वह बोली"ठीक है।जल्दी जाओ और खा कर आ जाओ।"
फिर क्या था?खरगोश गया और खा कर आ गया और बोला"काकी,बहुत ही स्वादिष्ट गाजर थे।ठीक है मैं जा रहा हूँ।"यह कहकर वह तेजी से चला गया।
इसके एक सप्ताह बाद शाम के वक्त बुढ़िया खेत की मेढ़ पर बैठी हुई थी।तभी खरगोश आकर बोला"काकी कैसी हो तुम?"उसे देखकर बुढ़िया बोली"मैं तो बिल्कुल ही ठीक हूँ, मगर आज तुझे गाजर खाने नहीं दूँगी।"
यह कहकर वह मुस्कुरायी,खरगोश यह देखकर उदास हुआ।फिर छल करते हुए बोला"काकी,मेरी पत्नी की इच्छा गाजर खाने को हुई है।क्या मैं गाजर ले सकता हूँ?"अब बुढ़िया क्या करें?वह तो बड़ी ही भोली-भाली थी।खरगोश की छल समझ ना सकी।बोली"ठीक है।जल्दी से गाजर लो और चलते बनो।"
फिर क्या था?लालची खरगोश का काम बन गया।वह आराम से पहले एक-दो खाया और दो गाजर लेकर चलते बना।
इसके एक महीने बाद जमींदार अपने खेत देखने आए,तो उनका मन खुश हो गया।गाजर काफी अच्छी तरह से तैयार हो गए थे।तभी उनको कुछ गाजर के पते हिलते नजर आए।उन्होंने बुढ़िया से पूछा"काकी,वहाँ क्या हो सकता है?"बुढ़िया बोली"क्या मालूम बेटा?"जमींदार ने अपने आदमियों को भेजा।आदमियों की आहट पाकर खरगोश भागा, किन्तु पकड़ा गया।
उसे पकड़कर जमींदार के पास लाया गया,उसे देखकर जमींदार बोले"अच्छी बात है।इसे मोटे-ताजे खरगोश को खाकर मुझे खुशी होगी।"
इतना कहकर वे अपनी आदमियों के साथ चले गए।बेचारे खरगोश को बुढ़िया देखती रह गई।लालची खरगोश को दण्ड मिल गया था।

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