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जुगनू हूँ मैं तेरी दरगाह का

Samar Singh 21 Apr 2023 कविताएँ दुःखद प्रेयसी के गुजर जाने पर प्रियतम उसकी याद में कुछ ऐसे ही तड़प रहा है। 6939 0 Hindi :: हिंदी

रात की खामोशी में चमकता, 
जुगनू हूँ मैं तेरी दरगाह का। 
मोती सा मुस्कुराता दो बूँद, 
आब हूँ मैं तेरी निगाह का।। 

कैसे - कैसे गम दिल में ढोये है, 
फिर भी वो खामोशी से सोये है। 
उनकी यादों में आठों पहर, 
पल- पल रोये है। 
कितने जमाने बीत गये, 
अब भी उनकी यादों में खोये है। 
कोई और नहीं मंजिल, 
किससे पूछूँ पता इस राह का, 
रात की खामोशी में चमकता, 
जुगनू हूँ मैं तेरी दरगाह का।। 


क्यों बीच मझधार में छोड़ चले, 
सारे रिश्ते एक ही झटके में तोड़ चले, 
इन बाँहों को मरोड़ चले, 
तू मिलेगा नहीं कहते हैं सब, 
क्या करूँ इस अफवाह का, 
रात की खामोशी में चमकता, 
जुगनू हूँ मैं तेरी दरगाह का। 

रचनाकार- समर सिंह " समीर G "

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