Chanchal chauhan 09 Feb 2024 कहानियाँ धार्मिक दूसरों की सहायता सेवा भाव मरणोपरांत सम्मान जीवन में सम्मान 2881 0 Hindi :: हिंदी
हे प्रभु हे प्रभु येशु मुझे अपने हृदय के पवित्र स्थान में छुपा ले । महिमानवित होने की पूरी इच्छा से मुझे बचा । मुझे स्वार्थी पन दूसरों से सम्मान पाने की कोशिश से बचा व मुझे कृपा दें जिससे मैं पवित्र चिंगारी बन जाऊं । हे येशु अपने पवित्र प्रेम की अग्नि से मेरा हृदय शुद्ध कर मुझे अपने साथ एक बना ले । ये थी संत अल्फोंसा की प्रार्थना । इस प्रार्थना को साकार करते हुए उन्होंने अपना जीवन अपना सर्वस्व दूसरों की सेवा में बिताया । भारत की प्रथम महिला संत ने एक सामान्य लारेस्ट धर्म बहन के रूप में अपना जीवन दिया जो आज संपूर्ण विश्व में विख्यात है । हमें अपने दुखों और पीड़ाओं से प्रेम कर लेना चाहिए क्योंकि प्रभु अपनों को ही कांटों का मुकुट प्रदान करते हैं ।प्रभु कष्ट भरा जीवन उन्हीं को प्रदान करते हैं जिनको इस के योग्य समझते हैं । ऐसा अल्फोंसा का मानना था । अपनी 36 वर्ष की अल्पायु में उन्होंने एक संघर्ष को जीवन जिया । अल्फोंसा का बचपन का नाम अन्नकुट्टी था ।बचपन में ही इनकी मां की मृत्यु हो गई थी तो इनका लालन पोषण इनकी मौसी ने किया । जब वह 13 साल की थी तभी से उन्होंने शादी ना करने का निश्चय किया । समाज और उनके रिश्तेदारों ने इसका विरोध किया किंतु अन्नाकुट्टी के दृढ़ निश्चय के कारण उनकी एक न चली और इन्होंने कान्वेंट में प्रवेश किया और प्रभु येशु के सामने ब्रम्हचर्य का व्रत धारण किया और धार्मिक वस्त्र धारण किए । उसके पश्चात में अध्यापन कार्य में व्यस्त रहने लगी और इसके साथ-साथ गिरजा घर को सजाने उसकी सफाई का कार्य करने लगी । इसी दौरान काफी मानसिक पीड़ा की शिकार होने लगी परंतु उन्होंने आध्यात्मिक राह को नहीं छोड़ा जब जब वह स्वस्थ होती तब दूसरों की सेवा कार्य ईश्वर वंदना में रहती थी। इस कारण इनके जीवन में बहुत चमत्कार हुए इस कारण उन्हें आभास हो गया कि उनकी मृत्यु होने वाली है ।स्वभाव से विनम्र, आदर्शवान थी । बच्चों से सबसे अधिक प्यार करती थी इसी कारण कई कान्वेंट स्कूल का नाम के नाम पर रखा गया । 12 अक्टूबर 2008 को रोम में हजारों लोगों के बीच इन्हें संत की उपाधि दी गई । 16 नवंबर 2005 में सचित्र टिकट का प्रकाशन हुआ । 23 अगस्त 2009 को वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने ₹5 व 100 के सिक्कों का उद्घाटन कर इन्हें सम्मानित किया । इस तरह कई सम्मान मरणोपरान्त दिए गए । यह कहानी बड़ी संक्षिप्त रूप मैंने उनकी सेवा भाव से प्रभावित होकर में लिखी है । अपने लिए तो सब लोग जीते हैं जीवन का आनंद तो दूसरों की सहायता व सेवा भाव मे है ।