Sudha Chaudhary 09 Aug 2023 कविताएँ अन्य 6066 0 Hindi :: हिंदी
कब यह नेत्र आंसुओं से रिक्त होंगे क्या ह्रदय खुलकर कभी हंस पाऊंगी मैं। यह सृजन क्षण में नहीं होगा कभी मांगू अगर आकाश तो बादल ही पाऊंगी मैं। बीण मैं फिर से बजाऊं क्या समझ प्रेम का प्रारंभ जिससे हो चला संकुचित है मन जैसे किसी अभिशाप से युक्त है इस हदय ने जाने कितने भाव संचित कर लिए हैं फिर तुम्हारे भाव से एक हो पाऊंगी मैं।, प्रेम नहीं तुमने ऐसा क्या दिया स्मृति लिए अंतर में जीवन निःशेष किया मेरी पीड़ा पर तुम्हीं हार जाते तो मेरी आंखों मे सुंदर स्वप्न बनते तो। प्रियतम क्या है, इसका मुझको दुख नहीं हम हैं तुम्हारे सहारे हमको ना भूल जाओ कहीं कब समर्पित कर तुम्हें कुछ पाऊंगी मैं। सुधा चौधरी बस्ती