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ऐ अजनबी आ जरा पास तो आ-कुछ बात तुम कहो कुछ मैं कहूं

संदीप कुमार सिंह 18 Oct 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 8090 0 Hindi :: हिंदी

ऐ अजनबी आ जरा पास तो आ,
कुछ बात तुम कहो कुछ मैं कहूं।
फिर धीरे_धीरे दोनों करीब आयेंगे,
और मस्ती के नगमें तब गायेंगे।

दोनों कि दोस्ती बेमिसाल होगी,
हर जुबान पर अपनी चर्चा होगी।
अजनबी_अजनबी मिल कर बना,
एक नया तूफान जो सब पे छा गया।

ये दोस्ती एक है नई ताकत, 
जिसको कुछ अलग है करना।
जुल्मों के खिलाफ में है आना, 
दुनियाँ को फूलों सा है सजाना।

माया के फेरों को है सुलझाना,
नव्य भव्य है प्रकाश फैलाना।
मानवता की बीज है और बोना,
जिससे सुरभित हो हर एक कोना।

भ्रम में न जाने कितने बर्बाद होते,
परिवार के लोग व्यर्थ में खूब रोते।
ये तूफान ऐसे भ्रमों को मिटाएगा,
लोगों में नवीन उत्साह जगाएगा।

शिकवों में बड़े_बड़े जन उलझे,
विवेकी भी कभी_कभी फंसते।
ऐसे शिकवों को है दूर करना,
उनके दिल में प्यार है भरना।

मौसम तो बदले रहते,
पर अपनी धारणा ना बदले।
जीवन को हम रंगों से भर लें,
लोगों के सारे गम को ले लें।

मनोबल जो है टूट जाता,
और निराशा का बादल छाता।
इन टूटने वालों को है सम्हालना,
तोड़ने वाले बनेंगे अब निशाना।

ऐसी एक इतिहास लिख जायेंगे,
जिसे पढ़ने को सब चाहेंगे।
अजनबी से बनी दोस्ती,
मिसाल के रूप में याद किए जायेंगे।

दिल में मोहब्बत का रंग भर लें,
शत्रुता जो बेवजह है को खत्म करें।
वक्त पर लोगों के काम आ जाएं,
उनके रूह को आराम में ले आएं।

जीवन तो है एक संग्राम,
पहले खुद से जंग जीत लें।
फिर लोगों के भी काम आएं,
मुसीबत वालों के साथ आएं।

हम तो हैं ऐसे ही तूफान,
जो होते आए हैं मेहरबान।
परिस्थिति ही है पहचान,
अपनी तो है मोहब्बत की दुकान।

उपकार करना ही है मेरा धर्म,
और यह ही है मेरा उत्तम कर्म।
जो पी गए हैं कुछ ऐसे शर्म,
ऐसों के बुद्धि को करना है गर्म।

नर्म के लिए बना रहूं नर्म,
गर्म के लिए बना रहूं गर्म।
मानसिकता में जब हो जोश,
तो कैसे होंगे कोई भी मदहोश?

बस सुन्दर हो अपना कर्म,
परिणाम भी आएंगे सुन्दर।
ऐसे संदेशों को है फैलाना,
जैसे हों जागरूकता अभियान।
(स्वरचित मौलिक)
संदीप कुमार सिंह✍️
जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार

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