Samir Lande 29 Apr 2023 कविताएँ समाजिक Samir Lande, समीर लांडे, जाली मुखोटे, सामाजिक, प्रेम, love, 8138 0 Hindi :: हिंदी
जाली मुखोटे हे यहा सारे, हर कोई एक छलावा है! दिखावे की अच्छाई , अंदर से ये काले है! क्या डरना है गैरो से, अपने ही लुटेरे है ! गैर तो लुटे सही रुलाकर, अपने हसकर लूटते है ! - समीर लांडे