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दुर्गति को प्राप्त कांग्रेस

virendra kumar dewangan 30 Mar 2023 आलेख राजनितिक Political 89376 0 Hindi :: हिंदी

हालिया संपन्न 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जिस तरह से दुर्गति हुई है, उससे यही लगता है कि देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस अब इतिहास के पन्नों में दर्ज करने के काबिल रह गई है। उसके हाथ से पंजाब राज्य तो गया-ही-गया; उसने उप्र, गोवा, उत्तराखंड और मणिपुर में भी कुछ उल्लेखनीय नहीं किया। 
उप्र के चुनाव में जिस ढंग से कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी ताल ठोंक रही थी, उससे तो यही लग रहा था कि इस बार कांग्रेस वहां कुछ करिश्मा करेगी। लेकिन, परिणाम जब आया, तब प्रियंका गांधी का नारा ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ खोखला साबित हुआ। उलटे प्रियंका की साख बुरी तरह गिर गई।
यह भी गौरतलब है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह पीटने के बावजूद, उसके बाद संपन्न 17 राज्यों के विधानसभा चुनावों में एक भी राज्य में बहुमत हासिल नहीं कर सकी। वह महाराष्ट्र, झारखंड और तमिलनाडु में गठबंधन सरकारों का हिस्सा भर रह गई है। इसके बावजूद यहां भी नेतृत्व उसके हाथ में नहीं है। महाराष्ट्र में शिवसेना, झारखंड में झामुमो और तमिलनाडु में द्रमुक इन राज्य सरकारों का नेतृत्वकर्ता बन गया है।
2019 के बाद जिन 17 राज्यों में चुनाव हुए हैं, वहां कांग्रेस न केवल फिसड्डी साबित हुई है, अपितु उसके वोट शेयर भी गिर गए। वह कहीं 5 प्रतिशत वोट हासिल की है, तो कहीं 10 प्रतिशत। उसे सिर्फ हरियाणा, झारखंड, उत्तराखंड, बिहार और केरल में कुछ अधिक वोट शेयर हासिल हुए हैं, जो उसके नेताओं लिए संतोषजनक हो सकता है। लेकिन, यह वोट शेयर भी आगामी चुनावों में बढ़ेगा, इसकी कोई उम्मीद दूर-दूर तक दिखाई नहीं देती है।
कांग्रेस की अधोगति के लिए कांग्रेस के वे ही नेता जिम्मेदार हैं, जो कांग्रेस को घाटे में चल रहे प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की तरह बेमन से चला रहे हैं। उनमें कांग्रेस को पुनर्जीवित करने की इच्छा तो है, लेकिन इच्छाशक्ति का निशांत अभाव है। यदि वे पूरी इच्छाशक्ति से पार्टी को चलाते, तो कोई कारण नहीं कि पार्टी के कद्दावर नेता उसको छोड़-छोड़कर दूसरी पार्टियों, खासकर बीजेपी का दामन थामते। जो लोग कांग्रेस छोड़कर चले गए हैं या जाने का मूंड बना रहे हैं, वे अपनी उपेक्षा व अनदेखी तथा कंेद्रीय नेतृत्व की नाकामी का आरोप लगाकर बाहर जा रहे हैं।
वर्तमान चुनावों में बड़ी बात यह भी कि कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व चुनाव प्रचार के लिए सिद्दत से कहीं नहीं गया और क्षेत्रीय सिपहसालारों या प्रदेश के अध्यक्षों के दम पर चुनावी वैतरणी पार करने का मुगालता अंत तक पाला रहा। जबकि बीजेपी और आप पार्टी के तमाम छोटे-बड़े नेतागण पूरी ताकत से चुनाव प्रचार में जुटे रहे। 
यह भी विचारणीय है कि कांग्रेस में राहुल गांधी को छोड़कर कोई ऐसा नेता भी नहीं है, जो सर्वमान्य हो और सचमुच का स्टार प्रचारक कहलाता हो और चुनाव जिताने का माद्दा रखता हो। क्या यह कांग्रेस की दुगर्ति का बड़ा कारण नहीं है? यहां यह भी उल्लेखनीय है कि आमजन का नब्ज न पकड़ने के कारण अब राहुल गांधी की भी धार भोथरी हो चुकी है।
कांग्रेस में जिस जी-23 के नेतागण, जब कभी नेतृत्व परिवर्तन की बातें किया करते हैं, तब उसी कांग्रेस के वे लोग, जो नेतृत्व की चाटुकारिता से महत्वपूर्ण पदों में बैठकर सत्तासुख भोग रहे हैं, वे ही जी-23 की आवाज की हवा निकालने में जुट जाते हैं। इसमें छग और राजस्थान के सीएम तथा लोकसभा में विपक्ष के नेता प्रमुख हैं, जो कभी नहीं चाहते कि जी-23 की आवाज सुनी जाए और उसपर मंथन कर उनके नेतृत्व को चुनौती दी जाए।
2022 में गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा के चुनाव होने हैं। इनमें गुजरात में बीते 27 सालों से बीजेपी की सरकार है। निश्चय है कि वहां एंटी-इंकम्बेंसी भी होगी, लेकिन कांग्रेस के रुख और रवैये से नहीं लगता कि वह गुजरात में बीजेपी को चुनौती देने की स्थिति में है। हां, अरविंद केजरीवाल की पार्टी पंजाब फतह के बाद ऐसी उल्लसित है कि वह बीजेपी को चुनौतियां दे सकती है, लेकिन यह चुनौती भी कांग्रेस के वोटरों में सेंधमारी करके ही संभव है, जो कांग्रेस के लिए नुकसानदेह ही साबित होनेवाला है।
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अनुरोध है कि मेरे द्वारा वृहद पाकेट नावेल ‘पंचायत’ लिखा जा रहा है, जिसको गूगल क्रोम, प्ले स्टोर के माध्यम से writer.pocketnovel.com पर  ‘‘पंचायत, veerendra kumar dewangan पर सर्च कर  पाकेट नावेल का आनंद उठाया जा सकता है।

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