Umendra nirala 30 Mar 2023 कविताएँ दुःखद Umendra nirala poetry .com 19328 0 Hindi :: हिंदी
आहिस्ता आहिस्ता जिंदगी बीत रही थी, मन चंचलता में खेल रहा था। उम्र ने भी क्या खेल खेला जवानी की लालसा दिखाकर, बचपन को भी छीन रहा था। जीवन के अंतिम पड़ाव में, मन विचलता में फेर रहा था। पल क्षण भर तेरे पास है बोलकर, मुझे डरा रही थी। मैं समझ चुका था मौत की उम्र क्या पल दो पल भी नहीं, फिर भी वह मुझे डरा रही थी। एक पल के लिए मैं घबरा गया मैंने कहा आ प्रकृति के नियम का पालन कर, और इस परिस्थिति को मैं खुशी से झेल रहा था। (मौत) (उमेंद्र निराला)