Rambriksh Bahadurpuri 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक #Rambriksh kavita#Beti per kavita#Rambriksh kavita man ki maar 11862 0 Hindi :: हिंदी
कविता-मन की मार बन अभिशाप जगत में बेटी मैं छिप कर क्यों जीवन जीती किसे सुनाऊं कौन सुनेगा किससे दिल की बात कहूं मैं? कब तक मन की मार सहूं मैं? मुझसे बोझिल मात-पिता क्यों? भारू होती बढ़ती ज्यों ज्यों क्या मेरा अधिकार नहीं कुछ! मन को कैसे शांत करूं मैं? कब तक मन की मार सहूं मैं? निकल चलूं यदि तन्हा पथ पर डर भय से तन कांपे थर थर बेटी हूं अपराध नहीं हूं किससे दुःख की बात करुं मैं? कब तक मन की मार सहूं मैं? मुझे प्यार से कहते बेटा प्यार में हमने स्वार्थ देखा बेटी कहा कौन बेटा को? यह पीड़ा! स्वीकार करूं मैं कब तक मन की मार सहूं मैं? एक भाग आंसू का सागर एक भाग मुस्कान समंदर सपनों का मरना भी तय है फिर भी यह स्वीकार करूं मैं कब तक मन की मार सहूं मैं। दोष कौन जो मारा मुझको? काट गिराया अंग अंग को खुली नहीं थी आंखें मेरी करुणा भरी गुहार करूं मैं कब तक मन की मार सहूं मैं। समझा जाता मुझे पराया मुझसे जाता नहीं भुलाया मात पिता घर आंगन सारा ममता छोड़ दुलार चलूं मैं कब तक मन की मार सहूं मैं।
I am Rambriksh Bahadurpuri,from Ambedkar Nagar UP I am a teacher I like to write poem and I wrote ma...