संदीप कुमार सिंह 02 Jul 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 5556 0 Hindi :: हिंदी
(दोहा छंद) कौतूहल सी जिंदगी,खुशी हुई है लोप। शायद उलझन वक्त का,और हुआ है कोप।। कौतूहल सी जिंदगी, घोर निराशा आज। भौतिक सुख की लालसा,समझें सब ही बाज।। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍️ जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....