Anany shukla 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक तस्वीर दिखाता हूँ 97795 0 Hindi :: हिंदी
मानव बदल गया कितना अब बताता हूं मै, परिवर्तित मानव की ये तस्वीर दिखता हूं मै था नहीं ज्ञान उर में परन्तु था विवेक कम से कम झूठ सत्य क्या सही गलत क्या यह विवेक था हरदम हम पिछड़े हुए भले थे पर नहीं बिछड़ने वाले थे थे स्वतंत्र हम सौम्य सुशील नहीं अकड़ने वाले थे सत्ता न थी तो मद उसका नहीं व्यापता था हमको हुआ नहीं अन्याय कभी नृप नहीं थाहता था हमको आज ज्ञान होकर भी मनमे नहीं विवेक दीखता है झूठ सत्य व सही गलत अब नहि मनुष्य कुछ सीखता है शील सौम्य तो दूर दुरे परतंत्र अकड़ने वाले हम भीड़ तो छोडो जीवन में भी सहज बिछड़ने वाले हम सत्ता सर पर नाच रही अब काल का कारण बनी हुई शाशक की अन्यायपूर्ण तलवार शीश पर तनी हुई जग-जीवन भी रहा सोच निज दुख न बता पाता हूं मै परिवर्तित मानव की ये तस्वीर दिखाता हूं मै