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सच का सामना

Meenubaliyan 10 Apr 2023 कविताएँ समाजिक औरत की जिंदगी आसान नहीं होती 8931 0 Hindi :: हिंदी

आज जब मैंने आईना देखा एक सच को अपनी नजरों से देखा,
क्या सोचकर आई इस दुनिया में न जाने कितने सपने सजाए थे,
हुई पैदा एक बेटी बनकर,
 माँ बाप की हसीं का कारण बनकर,
माँ बाप के घर का मान बढाकर,
अपने कुल की लाज सजाकर,
भाई बहन की हस्ती थी मै,
हर रोज उन आँखो मे सजती थी मै,
ना किया कभी कुछ भी ऐसा,
जो माँ बाप को लगता अफ़सोस के जैसा,
आज सजी है डोली मेरी,
घर आँगन में ख़ुशी की लहर भतेरी
सपना माँ बाप का आज पूरा होगा,
अरमान बेटी की खुशियों का आज सफल जीवन होगा,
सोचा था एक घर मिलेगा जीवन सफल बनाने को,
पर ना सोचा था कोई ना मुझे अपना समझाने को
अकेले ही जीना है जीवन सब कुछ कर देना है अर्पण,
आज किसी की पत्नी हूँ मै बेटी से अब बहु बनी मै,
कहते है तुम बेटी हो इस घर में सबके जैसी हो,
फिर क्यूँ चुप कर देते हो ज़ब अपनी बात मै कहने आऊ,
क्यूँ कहते हो पति हूँ मै मुझसे क्यूँ जुबान लड़ाऊ,
मै अपने मन की कहना चाहती हूँ क्या बिन बोले ही चुप हो जाऊ,
क्यूँ कहा था बराबरहम है सब कुछ तुम पर ही निर्भर है,
अब कुछ हो जाता है मेरी हा या ना के बैगर,
भूल गयी मै अपनी खुशियाँ बस उनको ख़ुशी जताते देखा,
मैंने कहा कुछ कहना चाहती हूँ,
बस इसी चाहत को बताते देखा,
कह नहीं किसी जो वो आज आइने को बताकर देखा,
फिर एक अपने आपको पलटकर एक बेटी बनाकर देखा,
खो गयी वो चमक जो माँ बाप ने दिखलाई थी,
बस इतना कहा आइने ने बेटी बनकर आयी थी,
आज बहु बनकर तेरी विदाई थी,
अपनी बनकर आयी थी आज apne👌आप से ही पराई थी,.......

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