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एक कन चला बनने मन- उर में ले उमंग

Santosh kumar koli 11 Dec 2023 कविताएँ समाजिक कन से मन 10691 0 Hindi :: हिंदी

एक कन चला बनने मन,
उर में ले उमंग।
नीरव, निश्चल, निष्क्रिय,
कभी समीर, कभी नीर संग।
कभी बहता, कभी लुढ़कता,
कभी चलता, कभी उड़ता है।
 न कुछ कहता, न कुछ सुनता,
अपनी ही धुन में रहता है।
क्षण -क्षण कण, 
क्षुण्ण, क्षुब्ध, क्षरण
हत, विलुप्त,
मन बना न रहा कण।
कण कणिक, निरूपित,
उभयावल अंधी दौड़।
संक्षुब्ध, संक्षारण,
आगे दौड़, पीछे चौड़।
कण का क्षत्र, क्षम,
कण का वजूद।
कण-कण से बने मन,
कण स्वयं संभूत।

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