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गर देख लिया क्या बुरा किया

Amit Kumar prasad 30 Mar 2023 कविताएँ हास्य-व्यंग This poem is a great motivation of Struggler who is never accepted defeat in any way and most of guidelines for a hard worker. 17791 0 Hindi :: हिंदी

गर लाख कोशिशें हो शिद्दत कि, 
तब मिलतें हैं दो चार नज़र! 
चलतें ही रहें कर ध्यान मग्न, 
मंज़ील के राह कि डगर- डगर!! 
                   कभी व्यस्त मिलें राही राहों मे, 
                   कभी अचल धरा पर कोलाहल! 
                   बड़ते ही गऐं हल्के - हल्के, 
                   हर पथ के हर ईक कण - कण पर!! 
नज़रों के सै को जो हवा मिली, 
उड़ते पंखों को देख लिया! 
पर डिगे नही हम अपने पथ से, 
बतलाओ ज़रा क्या बुरा किया!! 
                     अपनी हद मे अपनी हद मे, 
                     अपनी हद को जो तोड़ रखे! 
                     चाहत को कर्म से मोड़ रखे, 
                     कभी ईधर उड़े - कभी उधर उड़े!! 
फुर्र फुर फुर फुर्र फुर, 
कभी ईधर उड़े कभी उधर उड़े! 
नगरों के दिशा को छोड़ - छोड़, 
अम्बर को छूने की चाह लिए!! 
                    करती है शिद्दतें महा ज़ोर, 
                    ईस धरा - गगन कि दिव्य दिव्यता! 
                    कि ये ज्ञान परिभाषा हैं, 
                    अपने हद से ऊंचा उड़ना!! 
गुरुत्वाकर्षण के विरूध कहलाता है, 
विरूध से बेहतर अनिरूद्ध बनो! 
जो शुद्ध शुद्धता कर्म ज्ञान, 
निचे से ऊपर उठ कर ही!! 
                         बनती जलधारें महा प्रबल, 
                         जो बने बुलन्दि को छूने! 
                         छु - छु कर वो वसुधा के कण, 
                         बनते हैं धरा के धरा वीर!! 
नाज़ धरी है पन्नो पर, 
पर, लेकिन, किन्तु, परन्तु, फिर भी! 
हमने हमही को स्वारा है, 
कभी नाज़ कहें हमको भारत मा!! 
                         कभी भारत नाज़ हमारा है, 
                         चले चलो को विचलित कर! 
                         अविचलता देख पुकार रही, 
                         जो थमे बादलो ने घेरा!! 
अम्बर अमृत को निखार रहीं, 
ख्वाबों के नगर मे दौड़ रहें! 
मंज़ील को जो निस्दिन ख़ोज़ रहे, 
कभी इधर फिरे कभी उधर फिरे!! 
                   न मिले डगर मंज़ील की कहीं, 
                   मिलती है शिद्दतो से निसदिन! 
                   अधरों कि कशिश को ज़ोर प्रबल, 
                   होता है विजय का अमर राग!! 
अम्बर से लेकर वसुधा तक, 
मिलते हैं नही आशाऐं भी! 
गर निज़ उत्कंठा शोर करे, 
हो जाता है हर चाह सफल;
जब राह को चाह पथ - पथ पे मिले!! 
                        है पली सफलता संघर्षों पे, 
                        बिखरी है आरज़ू ईधर - उधर! 
                       गर लाख कोशिशे हो शिद्दत कि, 
                       तब मिलतें हैं दो चार नज़र!! 
चाहे हो बादल का अहम गुंज, 
वसुधा कि धरा के नगर - नगर! 
चलतें ही रहें कर ध्यान मग्न, 
मंज़ील कि राह कि डगर-डगर!! 


संगीतकार   :- अमित  कुमार   प्रशाद
সন্গিতকার   :- অমিত কূমার প্রশাদ
Soneter   :- Amit Kumar Prasad

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