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दिन मस्ती-सुबहाँ सहेली बन जाती है

Raj Ashok 19 Dec 2023 कविताएँ समाजिक मस्ती 13819 0 Hindi :: हिंदी

फिर,सुबहाँ सहेली बन जाती है। 
दिन,मस्ती ,
रात एक पहेली, बन जाती है। 
स्वपन, मे 
आती है । कोई एक राजकुमारी, 
दुर समुद्र पार, किनारा दिखाती है।   
करती है। ईशारा ,
ऊमीद जगाती है
बस कह देती है। 
उस पार है, जाना 
फिर ,मेहनत ,करता दिन भर 
मन मेरा
चन्द पैसों कि ख़ातिर
रेस, का घोड़ा बन, दोड़ लगता ।
आखिर ,शाम 
फिर खाली जेब लिए, घर आता। 
ये रात का बांदशाह
दिन का एक मेहनत कंश
शाम, को 
फिर गरीब बन जाता। 
इन्सान ,आखिर इन्सान है।
क्यों ,
सपनों मे पेड़ लगाता  । 
फल, तो सोचता है 
फिर परिणाम नहीं पाता।
हर, दिन हारता 
हर दिन ,फिर उठ जाता।

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