संदीप कुमार सिंह 03 Jul 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 6264 0 Hindi :: हिंदी
(दोहा छंद) झुलस रहा है आदमी, छलियों का है राज। वादा झटपट तोड़ते, समझे खुद को बाज।। झुलस रहा है आदमी,मिलता है प्रतिघात। मन जाता है टूट तब,करते सभ्य बलात।। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍️ जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....