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*तुम विदेश क्यों जाते हो*

akhilesh Shrivastava 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक आजकल युवाओं को विदेश जाने की होड़ लगी हुई है । 7364 0 Hindi :: हिंदी

*तुम विदेश क्यों जाते हो*

छोड़कर अपनी मातृभूमि को
तुम विदेश क्यों जाते हो
अपने स्वार्थ की खातिर तुम 
क्यों परदेशी बन जाते ।।

मात-पिता रिश्ते -नाते को
भूल वहां बस जाते हो
देख वहां की चकाचौंध को
तुम भ्रम में पड़ जाते हो।।

जन्म लिया जिस भूमि पर
तुम उसको क्यों ठुकराते हो
जहां पर चलना सीखा तुमने
तुम ठोकर उसे लगाते हो।।

अच्छी शिक्षा संस्कारों का
ज्ञान जहां तुम पाते हो
धन के लालच में आकर तुम
इस मां से दूर क्यों जाते हो।।

अपनी उन्नति की इच्छा से
तुम विदेश में जाते हो
इच्छापूर्ति के बाद भी तुम
वापिस क्यों नहीं आते हो।।

उच्च शिक्षा और अनुभव का
तुम लाभ उन्हें पहुंचाते हो
अपनी मातृभूमि की सेवा
करने से क्यों कतराते हो।

अपने ज्ञान की गंगा की
 धारा तुम वहां बहाते हो
भूलकर अपनी मातृभूमि 
को निर्मोही हो जाते हो।।

अपनी मातृभूमि की खातिर
तुमको वापिस आना होगा
लिया जो तुमने मातृभूमि से
उसका क़र्ज़ चुकाना होगा।।

विदेशी कभी भी तुमको 
अपना नहीं बनाएंगे
मातृभूमि जैसा अपनापन
तुम्हें नहीं दे पाएंगे।।

काम निकलते ही वे अपना
तुमको नहीं अपनाएंगे 
भूल तुम्हारा त्याग समर्पण 
वापस तुम्हें भगाएंगे।।

अपनी मातृभूमि का प्यार
देखो तुम न ठुकराना
परदेश में  कुछ दिन रहकर
वापस तुम घर आ जाना।।

रचयिता -अखिलेश श्रीवास्तव जबलपुर

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