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बचपन जो अब कहीं चला गया

Ujjwal Kumar 06 Jul 2023 कविताएँ अन्य बचपन जो अब कहीं चला गया। write-ujjwal kumar 8526 0 Hindi :: हिंदी

😍बचपन 😍

पकड़कर मांजा हाथ मे पतंग कि डोर थाम कर ,                   उडा उडा पतंग संग दोस्तों के साथ मे ,                             उठती  झूमकर मे खुशियों के संग मे ,                                मांजा भी हैं पतंग भी हैं वो बचपन हि चला गया,                ख्वाब जैसा हि था  बचपन जो अब कहीं चला गया!!                                                                                                                                            रेंत मे बनाकर घर ज़मीन पर मे लौटकर,                                   बेपरवाह सी झूमती दोस्तों के संग मे ,                                झोंका एक हवा का आया घर मेरा बिखर आया,                                ख्वाब जैसा हि था बचपन जो अब कहीं चला गया!!                                                           कागज कि नाव बनाकर बारिश मे ज़मीन पर तेरा उछलती ही, कूदती थी तालियों के संग मे ,                                           दौड़ते थे घूमते थे मस्तियों मे झूमते थे,                       सितोलिया जैसे कहीं खेल हम बचपन मे खेलते थे,                                                                            ख्वाब जैसा हि था वो बचपन जो अब कही चला गया !!                                                                            घुमड घुमड़ गुलाटी मार भाई बहनो के संग मे ,                                                                                        मिलकर हम बिस्तरों को रोन्द्ते थे रात में,                                    गुदगुदीया करते थे पापा हम जब सोते थे संग मे,                     नींद खुली और देखा ज़िम्मेदारी का बोझ अब मेरे सर पर गया,                                                               ख्वाब जैसा हि था बचपन जो अब कहीं चला गया ।

✍रचनाकार-उज्जवल कुमार

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