Join Us:
20 मई स्पेशल -इंटरनेट पर कविता कहानी और लेख लिखकर पैसे कमाएं - आपके लिए सबसे बढ़िया मौका साहित्य लाइव की वेबसाइट हुई और अधिक बेहतरीन और एडवांस साहित्य लाइव पर किसी भी तकनीकी सहयोग या अन्य समस्याओं के लिए सम्पर्क करें

शाम लगभग नौ बजे-टिमटिमाते मोमबत्ती की उजाला के तले

Rambriksh Bahadurpuri 07 Nov 2023 कविताएँ समाजिक #Rambriksh Bahadurpuri #ambedkar Nagar poetry # 4492 0 Hindi :: हिंदी

शाम लगभग नौ बजे 

एक दिन
निकला सड़क पर
शाम लगभग नौ बजे 
मैं गया कुछ दूर देखा
सब्जियां कुछ थे सजे,
टिमटिमाते मोमबत्ती
की उजाला के तले
बेंचती वह सब्जियां
तन मांस जिसके थे गले। 

था अचंभित सोंच में कुछ
जान भी मैं न सका
बैठ इतनी रात में वह
बेंचती क्यों सब्जियां,
जानने की चाह में
मैं दो कदम आगे बढ़ा,
पूछ बैठा अंत में कि
क्या जरूरत है पड़ा?

सब्जियां ही बेंच साहब
पालती परिवार हूं
कर और भी क्या सकती हूं
अब तो मैं लाचार हूं,
बेंच कर जाऊंगी वापस
लौट जब परिवार में
भूख मिट पायेगी तब ही
परिवार में दो चार की। 

स्तब्ध था मन शान्त मेरा
सोंच कर इस बात को
दो निवाला के लिए यह
बैठी है इस रात को,
मैं पचाने खुद का भोजन
हूं टहलता इस समय
बैठ यह रोटी के खातिर
रात के इस असमय। 

कर्म का सब खेल है या
है मुक़द्दर का लिखा
चाहता है कौन जीवन
जीना दुखड़ों से भरा
सोंचते ही सोंचते घर
वापस आया कब भला
क्या पता कब नींद आयी
कब सवेरा हो चला। 


          रचनाकार
     रामबृक्ष बहादुरपुरी
अम्बेडकरनगर उत्तर प्रदेश

Comments & Reviews

Post a comment

Login to post a comment!

Related Articles

शक्ति जब मिले इच्छाओं की, जो चाहें सो हांसिल कर कर लें। आवश्यकताएं अनन्त को भी, एक हद तक प्राप्त कर लें। शक्ति जब मिले इच्छाओं की, आसमा read more >>
Join Us: