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धूर्त मंत्री और अहमद

Uma mittal 30 Mar 2023 कहानियाँ अन्य सच्ची कहानी 20783 0 Hindi :: हिंदी

ईद के 2 दिन रह गए थे सभी को ईद के मुबारक दिन का इंतजार था सभी अपने अच्छे-अच्छे कपड़े बनवा रहे थे आखिर मस्जिद में हजारों लोग मिलेंगे तो तैयारी तो जरूरी ही थी पर बेचारा अहमद सोच रहा था कि मैं क्या पहन लूंगा उसके पास तो पुरानी अचकन थी पर टोपी का क्या करें वह तो काफी फट चुकी है बिना टोपी के मस्जिद कैसे जाएं टोपी पर तो हजारों लोगों की नजर पड़ेगी वहां हजारों से एक साथ उठते और झुकते हैं फटी टोपी का क्या करें अहमद बाजार जाकर टोपी का मूल्य पूछता है काफी दुकानों को देखने के बाद सबसे कम मूल्य की टोपी 6 आना में दुकानदार देने को तैयार होता है पर उसके पास तो एक आना ही है दुकानदार को अहमद कहता है कि यह टोपी मैं कल ले जाऊंगा और दुकानदार को घूरता देखकर दबे पांव घर आ जाता है रात उसे नींद नहीं आती सवेरे उठते ही वह अपने शहर के मंत्री के जिन के खेत में अहमद काम करता था पहुंच गया मंत्री का नाम था शेर सिंह शेर सिंह बड़े शान शौकत से हुक्का  गुड़ा गुड़ा रहे थे शेर सिंह के प्यादे मंत्री का हुक्का गरम कर रहे थे सुबह-सुबह अहमद को देखकर मंत्री जी बोले अहमद इधर कैसे अहमद हाथ जोड़कर बोला हुजूर हमें पांच आने की जरूरत है एक टोपी नमाज में पहनने के लिए चाहिए थी आप हमें 5 आना उधार दे देते मैं धीरे-धीरे काम करके आपके पैसे लौटा दूंगा मंत्री जी पहले गंभीर होकर हुक्का  गुड गुड आते रहे फिर बोले मैं पैसा तो दे  पर गिरवी रखने के लिए कुछ है तुम्हारे पास अहमद को कुछ कहते ना बना बस चुपचाप हाथ बांधे खड़ा रहा तब मंत्री जी अपने प्यादे को इशारा करके कुछ कागज मंगवाए और बोले इस कागज पर अंगूठा लगा दो जानता हूं तुम मेरा पैसा लौटा दोगे पर हिसाब किताब में कोई गड़बड़ी नहीं होनी चाहिए अहमद जैसे मशीन बन गया हो चुपचाप अंगूठा लगाकर 5 आना लेकर चलने लगा तो मंत्री जी ने कहा सुनो इस कागज पर लिखा है हर 3 महीने में रकम दुगनी हो जाएगी और गिरवी के रूप में तुम्हारा घर गिरवी रखा है तुम पूरे होश हवास में दो गवाहों के बीच अंगूठा  लगाए हो इसलिए पैसा जल्दी ही वापस करना अहमद लड़खड़ाते हुए हाथ में पैसा दबाए हवेली के बाहर आया उसमें इतनी ताकत ना थी कि मंत्री को कहे हमें पैसा नहीं चाहिए सोचता है क्या अपनी बेगम को बताए नहीं अरे अब तो बहुत देर हो गई है अहमद बाजार जा पर टोपी खरीद लेता है दूसरे दिन ईद पर अहमद का मन बुझा बुझा था अपने दो बच्चों के साथ मस्जिद में नमाज पढ़ने गया तो एक मौलवी ने कहा अम्मा यार यह नई टोपी बनवाई तो अचकन भी नहीं पहनते यह नए पुराने का मेल नहीं बैठता और बच्चों को भी जरा ढंग के कपड़े ले देते साल में एक बार तो ईद आती है चारों तरफ के ताने गरीबी से अहमद का मन हार गया था वह बीमार रहने लगा और मूल ब्याज बढ़ता गया 5 आना रुपए और  सैकड़ा बन गया 4 साल बाद एक दिन खेत में मंत्री जी आए और बोले अहमद आज तुम्हारे घर  तुम्हारे घर की कुर्की होगी 2 घंटे तक पैसे लाकर घर बचा लेना नहीं तो हमारे प्यारे तुम्हारे घर की तरफ गए हैं अहमद को कुछ कहते ना बना मंत्री इतना मक्कार होगा अब वह अपनी बेगम बच्चों को क्या कहेगा सोचते ही वह वही  जैसा था वैसा बैठा रह गया  ||                                                      उमा मित्तल
राजपुरा टाउन (पंजाब)

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