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बाल दिवस पर विशेषः बच्चों को सही दिशा देने की जरूरत

virendra kumar dewangan 30 Mar 2023 आलेख बाल-साहित्य Child matter 86359 0 Hindi :: हिंदी

बच्चों को सही दिशा देने की जरूरत

सितंबर 2017 मेे रेयान इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल-दिल्ली के नन्हे से छात्र प्रद्युम्न की हत्या उसी के स्कूल के छात्र ने इसलिए कर दिया, ताकि वह परीक्षा से बच सके। 

जनवरी 18 में लखनऊ के ब्राइटलैंड पब्लिक स्कूल में पढ़नेवाली सातवीं की एक छा़त्रा ने स्कूल में ही पढ़ रहे पहली कक्षा के छात्र को शौचालय में ले जाकर चाकू मार दिया। 

घटना को इत्तफाकन किसी ने देख लिया, तो फौरन उपचार करवाकर छात्र की जान बचा ली गई। कहा जाता है कि सातवीं की छात्रा स्कूल की छुट्टी करवाने के इरादे से अपराध को अंजाम दे रही थी। यह कैसी सोच और कैसा इरादा है?

बीते दिनों एक छात्र ने ग्रेटर नोएडा में अपनी मां-बहन की हत्या कर दिया; क्योंकि उसे पढ़ाई के लिए टोका-टोकी नापसंद था।

हाल-फिलहाल, हरियाणा के यमुना नगर में एक स्कूल में एक छात्र ने प्रिंसिपल को गोली मारकर हत्या कर दिया। पूछताछ में उसने बताया कि वह शिक्षकोें की शिकायत करने के इरादे से प्रिंसिपल के पास गया हुआ था। जिसे सुनकर प्रिंसिपल ने उलटे सब शिक्षकों के सम्मुख उसका धोर अपमान कर दिया। 

इससे क्षुब्ध होकर वह घर से पिताजी की पिस्टल उठा लिया। प्रिंसिपल को स्कूल में ही गोलियों से भून दिया। प्रिंसिपल की मौके पर ही मौत हो गई।

देश के ह्दय दिल्ली में हुए ‘निर्भयाकांड’ का भी मुख्य सूत्रधार एक नाबालिक ही था, जिसने बलात्कार जैसे जधन्य अपराध को अंजाम देने के लिए अन्य बालिगों को उकसाया था। जानलेवा योजना बनाने में उनका साथ दिया था। योजना मुहैया करवाया था।

एक शहर में एक नौंवी का छात्र घर-परिवार, पासपड़ोस व देश से उद्वेलित है। उसके कान को किसी ने भर दिया कि याकुब मेनन को फांसी देना सरासर गलत था। असली गुनेहगार तो दाऊद इब्राहिम है, जिसको पकड़कर सरेआम सजा देना चाहिए। उसका सवाल है कि याकूब मेनन जैसे छोटे अपराधियों को फांसी देने से क्या देश में आतंकवाद खत्म हो जाएगा?

ये चंद वाकिये हैं, जो यह प्रमाणित करते हैं कि भारत के भविष्य पर खतरे हजार हैं। खतरे की इन घंटियों को समय रहते महसूसा जाना चाहिए। यदि समय रहते नीति में आमूलचूल परिवर्तन नहीं किया गया, तो भावी पीढ़ी को दिशाहीनता के भंवर से निकालना मुश्किल हो जाएगा।

क्या हम उन्हें स्कूल इसलिए भेजते हैं कि वे पढ़ाई-लिखाई करके सभ्य, सुशील, शिक्षित व दीक्षित नागरिक बनने के बजाए अपराधी बनकर निकलें? दरअसल हम उनकी मासूमियत छीन रहे हैं। 

जिस उम्र में उन्हें घर में माता-पिता का प्यार और लाड़-दुलार मिलना चाहिए, उस समय उन्हें स्कूल की दहलीज में बस्ते के बोझ के साथ जबरिया खदेड़ दिया जाता हैं। फिर हम समझते हैं कि हम अपने मातृत्व व पितृत्व का फर्ज निभा रहे हैं।

बच्चा 6-7 घंटा स्कूल में रहता है। वहां भी उसको स्कूल की लुच्ची राजनीति, जो आचार्य, टीचर और स्टाफ के बीच चला करती है; देखनी-सुननी पड़ती है। 

वह स्कूल की दुव्र्यवस्था और बच्चों के साथ हो रहे अत्याचार को चुपचाप देखता-सुनता रहता है। वह यह भी देखता रहता है कि विद्या मंदिरों में किस कदर व्यावसायिकता हावी है। टीचर बिजनैसमैन की तरह व्यवहार कर रहे हैं।

फिर जब घर आता है, तब घर की समस्या, पास-पड़ोस के दमघोटू वातावरण और टीवी का खेल देखता-सुनता रहता है। रहा-सहा कसर मोबाइल ने पूरा कर दिया है। 

पालक समझते हैं कि बच्चों को मोबाइल थमाकर उन्होंने मैदान मार लिया है। जबकि सारी बुराइयों का ज्ञान एक झटके में देने का इरादा जाहिर कर दिया है। उनके हाथ में मोबाइल रूपी खिलौना देकर वे बच्चों के सबसे बड़े दुश्मन बन बैठे हैं।

दरअसल, आज माता-पिता ही दिग्भ्रमित हैं। उनके पास बच्चों के लिए समय नहीं है। है भी, तो उनकी जिज्ञासाओं को शांत करने का माद्दा नहीं है। 

कई माता-पिता तो फखत मां-बाप बने बैठे हैं, उन्हें न दुनियादारी की समझ है, न शिक्षा-दीक्षा का ज्ञान। 

लिहाजा, ऐसे माता-पिता अपने बच्चों के मार्गदर्शक कैसे बन सकते? ऐसे अधकचरे ज्ञानी घरों के ज्यादातर बच्चे अपराध की ओर मुड़ते देखे जा सकते हैं।

बच्चों का अपराध करना, खून करना और खून से हाथ सनना माता-पिता या पालक की नाकामी है। यह नैतिक और संस्कारित शिक्षा का अभाव दर्शाता है, जो घर-परिवार से शुरू होकर समाज को दूषित करता है। 

आज बच्चों में होड़ इस बात की कराई जा रही है, उन्हें हरहाल में डाक्टर, इंजीनियर और वैज्ञानिक बनना है। गोया, इस देश को फखत डाक्टर, इंजीनियर और वैज्ञानिक की ही जरूरत है। बाकी सब काम-धंधे फजूल के हैं।

जबकि इससे कहीं ज्यादा समाज को उम्दा खिलाड़ियों, योगाचार्यों, उन्नत किसानों, उद्यमशीलों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, शिक्षकों, प्रोफेसरों, वकीलों, कलाकारों, शिल्पकारों, पत्रकारों, लेखकों-साहित्यकारों और सामाजिक विषयों के ज्ञाताओं की जरूरत है, जो समाज को सही दिशा दे सकते हैं।

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अनुरोध है कि लेखक के द्वारा वृहद पाकेट नावेल ‘पंचायतः एक प्राथमिक पाठशाला’ लिखा जा रहा है, जिसको गूगल क्रोम, प्ले स्टोर के माध्यम से writer.pocketnovel.com पर  ‘‘पंचायत, veerendra kumar  dewangan से सर्च कर और पाकेट नावेल के चेप्टरों को प्रतिदिन पढ़कर उपन्यास का आनंद उठाया जा सकता है तथा लाईक, कमेंट व शेयर किया जा सकता है। आपकी प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहेगी।
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