कविता पेटशाली 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक 75707 0 Hindi :: हिंदी
अंतिम, आशा ,के, फूल,लूटा रही हूँ,। कविता हूँ,।मैं,, देह ,अपना, जला कर। पथ, के, अंधकार को डरा रही हूँ,। बड़ी ,भयावह रही ,इक घटना ,। कागज तो बहा,पर छपी रही इक कविता,। में अपने उस खोए ,हुये, कागज को ही अपना परिचय बता रही हूँ,। मगर ,तुमने ,।सुना नहीं होगा,। यह शहर ,बड़ा ही जहर भरा होता है,। इसकी, हवा में दूर ,उड़ता,गया एक कागज,। और ,इस ,पर, छपी, कविता बन जाती हो ,मानो निवाला,। मगर, शब्दों की कठोर ,यह ,कविता ,। उतरती ,नहीं ,गले से किसी के,। शायद ,शहर ,की जहरीली हवा ,कागज एक ,नहीं निगल पायी,। मगर यह कविता ,इतनी ,चबा दी ,गयी,। मगर सीना रहा उसी कागज में, जिसकी यह कविता थी,। और कागज ,इक ,गैरों के पैरों तले रहना ,अच्छा मान गया ,।। कविता पेटशाली ,।।
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